तेलिया कन्द


तेलिया कंद भारत की दिव्य और दुर्लभ औषधियों में से एक है इसीलए इसका नाम 64 दिव्य औषधियों में सबसे पहले आता है।अभी तक इसके बारे में विवरण तो कई ग्रंथों में मिलता है पर प्रमाणिक रुप से जानकारी किसी को भी नहीं थी। एक प्रकार से इसे अप्राप्य पौधा मान लिया गया था। एक जाने-माने वैद्य वैद्य हरि शंकर जी ने घोषणा की थी कि जो मुझे तेलियाकंद का प्रमाणिक पौधा लाकर दिखा देगा उसे मैं ₹100000 का पुरस्कार दूंगा पर वे अपनी इच्छा मन में ही लिए दुनिया से विदा हो गए
  कैंसर जैसे असाध्य रोगों पर यह आश्चर्यजनक रूप से प्रभाव युक्त है। इसके प्रभाव का उल्लेख किया जाए तो एक पूरा ग्रंथ बन सकता है इसी के संबंध में हम इस पोस्ट के माध्यम से तेलिया कंद के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे
   इस कंद का महत्व इसी बात से लगाया जा सकता है कि वैद्य घनश्याम दास जी वैद्य हरि प्रकाश जी आदि ने अपना पूरा जीवन ही इस कंद की खोज में लगा दिया परंतु फिर भी उन्हें इस प्रकार का कंद देखने को नहीं मिला। हारकर उन्होंने अपने जीवन के उत्तरार्ध में कहा कि तेलिया कंद के बारे में लगभग सभी आयुर्वेद ग्रंथों में पढ़ने को मिलता है परंतु अब इसका अस्तित्व पृथ्वी पर नहीं है, हो सकता है कि किसी समय मे यह कंद पृथ्वी पर रहा हो परंतु जिस प्रकार से कई दुर्लभ पशु पक्षियों की जाती नष्ट हो गई उसी प्रकार से तेलिया कंद की जाती भी नष्ट हो गई और यह अब केवल पुस्तकों तक ही रह गई है।
   तब मैंने कई साधु संतों के संपर्क स्थापित किया और इसके बारे में उनसे पूछताछ की तो उन्होंने बताया इस कंद की उपयोगिता और स्वच्छता के बारे में परंतु यह उन्होंने भी स्वीकार किया किया यह कंद अभी तक हमें देखने को नहीं मिला है।
साधु-संतों भारत के प्रसिद्ध वैद्यो, प्रमाणिक आयुर्वेद ग्रंथों में इस कंद के बारे में जो जानकारी प्राप्त हुई है वह इस प्रकार है:- इसके पत्ते कनेर के पत्ते की तरह लंबे पतले और तिकोने होते हैं उन पत्तों के ऊपर काले तिल के समान छींटे पड़े रहते हैं इसका कंद बहुत बड़ा होता है।
   यह कांड हाथ की लंबाई जितना मोटा और चिकना होता है तथा छोटे-छोटे छोटी गांठे दिखाई देती है।
  सुप्रसिद्ध वनस्पति शास्त्री रूपलाल जी ने अपने मासिक पत्रिका ब्यूटी दर्पण सन 1926 के अंक में लिखा है, कि यह पौधा अत्यंत दुर्लभ और महत्वपूर्ण है, इसके पत्ते चिकने होते हैं और दूर से यह सूरन के पत्तों की तरह दिखाई देता है। इन पत्तों के ऊपर काले तिल के सामान छिटे नहीं होते, परंतु तने के ऊपर ऐसे छींटे अवश्य होते हैं। उन्होंने इस पत्रिका में तेलिया कंद का चित्र में छपा था और लिखा था कि मुझे तेलिया कंद की एक पौधा भैयालाल पांडे से मिला है परंतु बाद में वनस्पति विशेषज्ञों के द्वारा जांच करने पर आरणी पौधा निकला।
        अनुभूत योग माला के सन 1934 के अक्टूबर माह अंक में इस कंद का परिचय देते हुए लिखा है कि यह कंद हिमालय और मध्य भारत में मिलता है तथा ऐसा कंद अत्यंत दुर्लभ पहाड़ी स्थानों पर पाया जाता है जहां मनुष्य की पहुंच बहुत कठिनता से होती है।
     सन 1967 में जापान के 5 सदस्यों का दल लगभग 4 महीने पूरी हिमालय में घूमता रहा उनका उद्देश्य केवल तेलिया कंद का पता लगाना था परंतु इसमें वे भी सफल नहीं हो सके। हार कर उन्होंने अपनी टिप्पणी दें कि यह कंद इस समय समाप्त नहीं हुआ है तो दुर्लभ अवश्य है।
    इन सारे तथ्यों से पता चलता है कि इस कंद के बारे में खोज पिछले 100 वर्षों से हो रही है और लोगों ने अपना पूरा जीवन इसकी खोज में ही लगा दिया है परंतु अपने उद्देश्य में सफलता प्राप्त नहीं कर सके हैं। इससे इस महत्वपूर्ण कंद के महत्व की महिमा को जाना जा सकता है।
गुण दोष----
       इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्राचीन काल में यह कंद भारत भूमि पर अवश्य था और हमारे ऋषि मुनि और आयुर्वेद के ज्ञाता इस कंद का उपयोग करते थे, उन्होंने इसके बारे में सम्मानजनक शब्दों का प्रयोग किया है कुछ महत्वपूर्ण तथ्य इस प्रकार हैं
यह एक चमत्कारिक वनस्पति है और उसके दर्शन ही महत्वपूर्ण है "चरक संहिता टीका"
तेलिया कंद दिव्य कंद है और इसके रस से पारे की गोली सुगमता से बांधी जा सकती है "काव्य संहिता "
 तेलिया कंद अत्यंत महत्वपूर्ण औषधि है इस के रस को पारे में मिलाने से पारा तुरंत ठोस होकर गोली का आकार धारण कर लेता है और इस गोली के सहयोग से तांबा और चांदी तुरंत सोने में बदल जाती है "श्रुति विज्ञान"
तेलिया कंद का रस अत्यंत महत्वपूर्ण है इसे शीशी में भरकर उसमें पारे को शहद में घोटकर मिला दिया जाए तो 4 घंटे में पारा सिद्ध सूत में परिवर्तित हो जाता है यह सिद्ध सूत तांबे को सोने में एक ही क्षण में परिवर्तित कर देता है  "डॉक्टर प्राणेकर"
यदि तेलिया कंद के रस में भिगोया हुआ पारा जहर खाए व्यक्ति की हथेली पर रख दिया जाए तो यह सारा शरीर के पूरे शहर को चूस लेता है और व्यक्ति बन जाता है "पंडित पक्षधर झा"
यदि तेलिया कंद का छोटा सा तने का टुकड़ा पानी में रखकर यदि उस पानी से स्नान की जाए तो शरीर के किसी भी प्रकार का चर्म रोग मात्र 2 दिन में समाप्त हो जाता है "आयुर्वेद रत्न"
तेलिया कंद को यदि पुत्रदा कंद कहा जाए तो ज्यादा उपयुक्त रहता है यदि इसके कंद को पानी में घिसकर बांझ स्त्री रजस्वला समय में केवल 3 दिन ही ले ले तो निश्चय ही उसे पुत्र रत्न प्राप्त होता है इस कंद की सबसे बड़ी विशेषता ही यही है आदि आदि।
    कुल मिलाकर इन सारे ग्रंथों को पढ़ने से यह तो स्पष्ट हुआ कि यह कंद अत्यंत ही महत्वपूर्ण और दुर्लभ है। यदि इसे आयुर्वेद की 64 दिव्य औषधियो में सर्व प्रमुख स्थान मिला है तो निश्चय ही यह अत्यंत महत्वपूर्ण होनी चाहिए ।
    मेरे पास एक प्राचीन हस्तलिखित पुस्तक थी उसमें भी तेलिया कंद के बारे में कुछ विवरण मिलता था। यह पुस्तक हमारे परिवार में कई पीढ़ियों से सुरक्षित चली आ रही थी, उस पुस्तक में लिखा था कि तेलिया कंद का रस तांबे को सोने में तुरंत परिवर्तित कर देता है मेरे पिताजी ने भी जो कि प्रसिद्ध वैद्य थे कहा था कि हम लोगों के ऐसे सौभाग्य कहां कि हम इस कंद के दर्शन कर सके। इससे भी मेरे मन में यह प्रबल इच्छा जागृत हुई कि यदि इस पृथ्वी पर कंद है तो उसका पता अवश्य लगाया जाए। मेरे मन में भी यह दबी हुई एक साथी की यदि मैंने तेलियाकंद का पता लगा लिया तो यह आयुर्वेद की बहुत बड़ी सेवा होगी और मेरा नाम आयुर्वेद समाज में हमेशा हमेशा के लिए अमर हो जाएगा
    परंतु मुझे कुछ सूझ नहीं रहा था कि मैं इसके लिए शुरुआत करूं तो कहां से करूं मेरा पिछला अनुभव यह है, कि इसके बारे में अगर किसी वैद्य से भी अब आगे और जानकारी नहीं मिल सकेगी। जितना भी साधु सन्यासी और लोगों से मिला था उन सब ने नहीं बताया था कि उन्हें स्कंध के बारे में मालूम नहीं पढ़ सका यदि आप इसके बारे में बहुत सुना है। इस संबंध में मैं कई साधु और सन्यासियों से मिला उन्होंने बताया कि यह कंद आबू, गिरनार, विंध्याचल, हिमालय आदि पहाड़ों पर मिल सकता है मैंने गिरनार का चप्पा चप्पा छान मारा परंतु मुझे इस कांद के बारे में मालूम नहीं पड़ सका। अब मैं प्रमाणित रूप से कह सकता हूं कि भले ही प्राचीन समय में आबू और गिरिनार के पहाड़ों में तेलिया कंद का पौधा रहा होगा परंतु अब इन पहाड़ों में अब यह दुर्लभ पौधा प्राप्त नहीं है।
इसी बीच मुझे देहरादून की आगे मसूरी की पहाड़ियों में घूमने का अवसर मिला तो वहां मैंने सुना कि कोई सीताराम स्वामी है जिनको तेलिया कंद के बारे में पूरी जानकारी है
   मैंने इससे पहले भी सीताराम स्वामी के बारे में सुन रखा था कि वे आयु से वृद्ध है परंतु उनके पास है जड़ी बूटी और आयुर्वेद के विशेष नुस्खे हैं जो कि अन्य किसी ग्रंथ में प्राप्त नहीं होते। यह भी सुना था कि वह एक श्रेष्ठ आयुर्वेद रसायनिज्ञ हैं।यदि कोई मृत्यु के निकट पहुंचा हुआ व्यक्ति भी उनके आंगन तक पहुंच जाता है तो फिर वह मर नहीं सकता क्योंकि उन्हें सैकड़ों हजारों अचूक नुक्से ज्ञात है।
    मैं फिर प्रयत्न करके उनके घर तक पहुंचा परंतु, मेरा दुर्भाग्य कि वहां जाने पर मुझे पता चला कि 4 महीने पूर्व ही उनका देहांत हो चुका है। मृत्यु के समय उनकी आयु 105 वर्ष थी और अंतिम समय तक भी उनका सारा शरीर स्वस्थ व क्रियाशीलता तथा वे नित्य तीन चार मील की पैदल यात्रा कर लेते थे।
  परंतु मुझे वहां एक महत्वपूर्ण जानकारियां मिली कि काफी वर्ष पूर्व जोधपुर के श्रीमाली जी इनके पास कुछ महीने रहकर इन का विश्वास प्राप्त कर सके थे और इनसे आयुर्वेद के सारे नुस्खे प्राप्त किए थे इसके बदले में श्रीमाली जी ने इनको सम्मोहन प्रयोग व वशीकरण प्रयोग सिखलाया था,और बदले में सीताराम जी ने अपने पास जितने भी नुस्खे थे वह सब प्रमाणिक रुप से बता दिए थे साथ ही साथ अपने सामने उसको आजमा कर या प्रयोग करके भी बता दिया था तथा तेलिया कंद के बारे में मैं भी इनसे प्रामाणिक जानकारी श्रीमाली जी को मिली थी।
   श्रीमाली जी का नाम ज्योतिष और तंत्र-मंत्र के क्षेत्र में काफी सुन रखा था इसलिए उनके बारे में कोई भी बात छुपी हुई नहीं थी मैं वहां से बिना विलंब किए सीधा जोधपुर जा पहुंचा।

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