अप्सरा का प्रत्यक्षीकरण संभव है?



क्या वर्तमान में भी अप्सरा का प्रत्यक्ष दिखाई देना संभव है?
        मैं कहता हूं कि निश्चित और नि:सन्देह उसका प्रत्यक्ष दर्शन और उसका साहचर्य संभव है। जिस प्रकार से हम किसी अन्य पुरुष को, पेड़ को या मकान को देख सकते हैं, उसी प्रकार से अप्सरा को प्रत्यक्ष देख सकते हैं, स्पर्श कर सकते हैं, और उसके साथ साहचर्य संभव है। क्या हम हवा को देख सकते हैं, सही परिभाषा कहे तो हम हवा को नहीं देख सकते, और हम यह दावे के साथ कह सकते हैं कि हवा होती है, जिससे हमारा जीवन गतिशील बना रहता है, इसी प्रकार अप्सरा भी होती है, और जीवन को गति एवं आनंद प्रदान करती रहती है। और प्रत्यक्ष रूप से भी प्राप्त होती है तथा उनके द्वारा निरंतर धन्य द्रव्य वस्त्र आभूषण प्राप्त होते रहते हैं।
     एवं अप्सरा से संबंधित जितनी भी साधनाएं हैं उनमें शशि दिव्य अप्सरा साधना अपने आप में सर्वश्रेष्ठ और अद्वितीय मानी गई है क्योंकि शशिदेव्या अप्सरा अत्यंत दयालु स्वभाव की है और शीघ्र ही सिद्ध होकर प्रत्यक्ष उपस्थित हो जाती है।इस साधना को सिद्ध करने के बाद शशिदेव्या अप्सरा जीवन भारत साधक के नियंत्रण में रहती है और साधक जो भी आज्ञा देता है उसका मनोयोग पूर्वक पालन करती है।
    शशि दिव्य अप्सरा साधना को प्रेमी के रूप में अनुभव और सुख प्रदान करती है। उसका निर्धनता को हमेशा हमेशा के लिए समाप्त कर देती है, और उसे अपने जीवन में संपन्न और ऐश्वर्यवान कर देती है। शशिदेव्या अप्सरा अत्यधिक सुंदर तेजस्वी और सौंदर्य की सकार प्रतिमा है। अत्यंत नाजुक कामनी और 16 वर्षीय युवती के रूप में साधक के सामने सज-धज कर बराबर बनी रहती है।साधक चाहे तो दृश्य रूप में और वह चाहे तो अदृश्य रूप में उसके सामने बनी रहती है और उसका कार्य करके प्रसन्नता अनुभव करती है।
    आज के युग में मेरी इन पंक्तियों को पढ़कर सामान्य व्यक्ति विश्वास नहीं करेगा, जिसको बुद्धि का अजीर्ण है, जो संसार में अपने आपको बुद्धिमान समझ बैठा है, उसको तो भगवान भी नहीं समझा सकता।जो पग पग पर आलोचना करने में ही अपनी शान समझते है, उनको साधना के बारे में कुछ बताना बेकार है।
भर्तृहरि ने एक स्थान पर कहा है कि उल्लू दिन को अपनी आंखें बंद किये रहता है और उसको यदि पूछा जाए तो वह दृढ़ता के साथ यही कहेगा आकाश मैं सूर्य उगता ही नहीं या सूर्य जैसा कोई देवता है ही नहीं और सूर्य से किसी भी प्रकार की प्रकाश या रोशनी नहीं होती तो तो इसमें सूर्य का क्या दोष? ठीक इसी प्रकार आज के वातावरण में सांस लेने वाले साधक भी इसी प्रकार से यदि अविश्वास की दीवार पर खड़े होकर कहे कि साधना होते ही नहीं या अप्सर के प्रत्यक्ष दर्शन संभव नहीं तो तपस्वियों शास्त्रों और गुरु का क्या दोष?
       अप्सरा साधना संभव है, और इसे कोई भी साधक मनोयोगपूर्वक संपन्न कर सकता है। जब मुझे इस साधना में लाभ हुआ है, जब मैंने इस साधना के माध्यम से सफलता पाई है, तो आप भी सफलता पा सकते हैं और यह साधना कठिन नहीं है, आवश्यकता इस बात की है कि आप में विश्वास हो, धैर्य हो, अपने मार्गदर्शक या गुरु के प्रति आस्था हो और हमारे शास्त्रो के प्रति विश्वास हो, क्योंकि विश्वास के द्वारा ही जीवन में सब कुछ संभव है जो प्रयत्न करता है वह सफल हो जाता है।
    किसी भी युद्ध को बिना अस्त्र-शस्त्र के नहीं जीता जा सकता, ठीक उसी प्रकार साधना में यंत्रों की आवश्यकता होती है, और उसके द्वारा ही साधना के युद्ध को जीता जा सकता है और सफलता भी प्राप्त की जा सकती है।

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