तेलिया कंद-3


मैंने इन औषधियों का प्रयोग रोगियों पर किया है और मैं आश्चर्यचकित हूं कि केवल एक या दो खुराक देने से ही मरीज का रोग हमेशा-हमेशा के लिए समाप्त हो जाता है,यदि जितनी औषधियां मुझे लिखाई है उनमें से किसी एक में भी यदि कोई  वैद्य परांगत हो जाए,तो केवल उसी से वह असीमित लोकप्रियता प्राप्त कर सकता है और आर्थिक दृष्टि से पूर्ण संपन्नता प्राप्त कर सकता है।   
                        मैंने यह भी अनुभव किया कि उन्होंने मुझे जितनी भी औषधियां दिखाई है उनका विवरण कहीं पर भी आयुर्वेद के ग्रंथों में नहीं मिलता, पूरे आयुर्वेद के ग्रंथों को टटोलने पर भी इनमें मुझे इस प्रकार की औषधियों का विवरण एवं निदान नहीं मिला, इससे यह स्पष्ट है कि यह सर्वथा मौलिक और प्रमाणिक है क्योंकि यह अनुभूत हैं।
                   एक दिन चर्चा के दौरान तेलिया कंद के बारे में बातचीत चल पड़ी तो मैंने निवेदन किया कि इसके बारे में कई ग्रंथों में पड़ा है और सैकड़ों लोगों के मुंह से इसके बारे में सुना है, क्या आपने इसको देखा है?
                 उन्होंने उन्होंने कहा कि मुझे इसके बारे में हल्का सा संकेत है अभी प्रयास करेंगे।
     कुछ समय बाद ऐसा अवसर मिला और उनके साथ मुझे नैनीताल की तरफ जाने का अवसर मिला। दिल्ली से नैनीताल किसी कार्य से पंडित जी को जाना था मुझे भी उन्होंने साथ में ले लिया काठगोदाम के पास जब हमारी कार पहुंची तब तक रात के 9:00 बज चुके थे।एक क्षण के लिए सड़क पर ही उन्होंने कार रुकवाई, उनका विचार रात्रि को काठगोदाम में ही उनके प्रिय शिष्य शर्मा जी के यहां रुकने का था, परंतु दो  तीन झण विचार करने के बाद व्यस्तता की वजह से या जल्दी वापस लौटने की वजह से काठगोदाम बिना रुके नैनीताल पहुंचने का निश्चय कर लिया।
      कार वे स्वयं चला रहे थे और पीछे की सीट पर मैं बैठा हुआ था वह नैनीताल की सड़क पर खतरनाक मोड़ो को सावधानीपूर्वक पार कर रहे थे काफी आगे जाने पर मुख्य सड़क को छोड़कर बाईं तरफ पतली से सड़क पर बढ़ गए।
        मैंने जिज्ञासा प्रकट की तो उन्होंने बताया कि यह पटवा डागर सड़क है।
   आगे चल कर उस सड़क से भी बाई तरफ मुड़ गए।मैंने देखा कि दूर कहीं पर आग से जलती हुई दिखाई दे रही है, मैंने उनसे पूछा तो उन्होंने बताया कि यह आग नहीं है अपितु कोई चमत्कारी पौधा है जो की रात्रि को चमकता है। उस पौधे की पहचान दिन को हो ही नहीं सकती,क्योंकि रात्रि को ही यह पौधा चमकता है, ऐसा इसलिए इस पौधे को पहचानने के लिए कुशल वैद्य को रात को ही मालूम कर निशान बना लेना चाहिए ,जिससे कि प्रातः काल उसे ढूंढने में सहायता मिले।
        उन्होंने सड़क पर ही कार छोड़ दी और आगे बढ़ गए, मैं भी उनके साथ था। मैंने देखा कि मुझसे कुछ ही दूरी पर वह चमकता हुआ पौधा खड़ा था।मुश्किल से 10 या 12 फीट की दूरी रही होगी, उसके पत्ते टीम टीम कर रहे थे वह स्थान पहाड़ों के मध्य में है और मुख्य सड़क से लगभग 2 या 3 किलोमीटर अंदर है। पंडित जी ने वहां पर चार पांच पत्थरों को एक के ऊपर एक रखकर निशान बना लिया और वापस लौट गए।
     कार से पुनः एक बार तो काठगोदाम जाकर विश्राम करने का विचार किया परंतु फिर वे नैनीताल की तरफ बढ़ गए और वहां एक होटल में जाकर ठहर गये।
        दूसरे दिन उन्होंने कार को वही रहने दी और मुझे साथ लेकर पैदल ही चल पड़े।डांगर सड़क पर आकर हम आगे बढ़े और दिन के लगभग 11:00 बजे तक हम उस स्थान पर पहुंच गए जहां कल रात को गए थे। इस समय यहां पर कोई ऐसा पौधा दिखाई नहीं दे रहा था, इसमें से प्रकाश आ रहा हो,या  जिसके पत्ते जुगनू की तरह टिमटिमा रहे हो।       

 तेलिया कंद की पहचान :- 

                         हम कुछ आगे बढ़े तो मुझे एक पौधा दिखाई दिया। उसकी ऊंचाई लगभग 4 फीट के आसपास थी, इसके पत्ते मूली के पत्तों की तरह बाहर निकले हुए थे, और कुल मिलाकर तीन पत्ता ही उस पूरे पौधे पर थे। इस पत्तों पर भी काले काले निशान और बिंदिया स्पष्टता के साथ दिखाई दे रही थी, पर यह पत्ते हरे ना होकर पीले रंग के थे और ऐसा लग रहा था कि इन पर तेल चढ़ा हुआ हो। इन पौधों का घेरा लगभग दो फीट था और इसका तना हाथ की कलाई जितना मोटा था। आसानी से ये तना मुट्ठी में आ सकता है। इस तने की छाल आम की छाल के जैसी दिखाई देती है और या तना भी तेल से चुपड़ा हुआ था।
         इस पौधे के आस पास और कोई पौधा नहीं था, परंतु उसके आसपास की जमीन तेल से भीगी हुई थी, मैंने जब उसके पास की जमीन पर से कुछ रेत और कंकड़ उठाए तो उसमें लगा हुआ तेल मेरे हाथों में लग गया तथा कपड़ों पर भी तेल के छींटे लग गए, ऐसा लग रहा था कि जैसे इस मिट्टी से तेल चू रहा हो।
                 गुरुजी अपने साथ एक मोटा सा रस्सा और एक कुदाल लेकर चले थे। उन्होंने मुझे उस कंद से रस्सी बांध देने को कहा और उसके आसपास की जमीन धीरे-धीरे खोदने की आज्ञा दी। जब चारों तरफ से एक 1 फीट जमीन खुद गई तो उस कंद की जड़े दिखाई देने लगी। यह जड़े लाल रंग के रोयेदार होती है।
                     इसके बाद रस्सी से दूसरे सिरे को लेकर मुझे पास में खड़े एक पेड़ पर चढ़ जाने को कहा। रस्सी का दूसरा सिरा उस तने से बांधा हुआ था। उसके पास ही कुदाल रख दी गई और गुरु जी स्वयं भी पेड़ पर चढ़ गए।इस कंद से पेड़ की दूरी लगभग 10 फीट थी, पेड़ मजबूत तथा ऊंचा था।जब गुरु जी इस पर चढ़ गए तो मुझे रस्सी को जोर से खींचने के लिए कहा।
      मैंने जब झटके देकर रस्सी को खींचा तो आठ दस बार के झटकों के बाद कंद जड़ से उखाड़ कर बाहर निकल आया पर साथ ही एक भयंकर पुकारता हुआ सर्प भी बाहर निकल आया जो कि काले रंग का था और बाकी लंबा था साथ ही साथ उसके शरीर पर सफेद चिखते थे।ऐसा लग रहा था जैसे वह फुफकार रहा हो और अत्यंत क्रोधित हो।
        उसने बाहर निकलते ही जोरो से पुकार मारी और पास पड़ी कुदाल को ही अपना शत्रु समझ कर उस पर जोर से दांत गड़ा दिए। मैं पेड़ पर बैठे-बैठे भी भय से कांप रहा था इतना मोटा और क्रोधित अवस्था में सर्व मैंने इससे पहले नहीं देखा था
   5 मिनट के अंतराल में उस सर्प ने आठ 10 बार क्रोध से अपने दांत कुदाल में गड़ा दिए और कुदाल पर ही फन पटकता रहा ,लगभग 10-12 मिनट में ही सर्प पछाड़ खाकर समाप्त हो गया।अब जब ऊपर से देखा कि सर्प मर गया है तब भी लगभग 15 मिनट तक नीचे उतरने की हिम्मत नहीं हुई ।गुरुजी ने बताया कि यह सिर्फ अत्यंत भयानक होता है और सामने जिसको भी देखता है उसी को भाग कर काट खाता है। कई बार तो यदि नीचे कोई व्यक्ति होता है तो उसके पीछे मिल दो मिल भाग कर भी उसे काट आता है।एक बार के काटने से ही व्यक्ति तुरंत समाप्त हो जाता है क्योंकि इसमें अत्यंत तीव्र विष होता है।
                  इसके बाद गुरु जी नीचे उतर आए, उनके साथ ही साथ मैं भी नीचे उतर आया और हम उस कंद के पास पहुंचे।मैंने देखा कि कुदाल पर सर्प ने जिस प्रकार से दांत मारे थे,उससे लोहे जैसा शख्स धातु पर भी उसके दांतो के निशान पड़ गए थे।इसी से ज्ञात होता है कि वह सर्प कितना अधिक क्रोधित अवस्था में भयंकर होगा। जहां पर सांप ने दांत गड़ा दिए थे वहां से पीली पीली धराए भी साफ दिखाई दे रही थी जो कि सर्प के मुंह से निकली विष की धाराएं थी।
               खींचने से कंद जड़ सहित बाहर निकल आया था, उठाने पर इस का वजन लगभग 5 से 6 किलो के बीच था। आश्चर्य की बात यह थी कि जड़ सहित कंद के बाहर निकालने पर उसमें से तेल का सोता सा फूट पड़ा और बाहर तेल की नदी बह निकली।आधे घंटे बाद भी उस सोते में से अंगूठी जैसी धार बाहर निकल कर बह रही थी हम कंद को लेकर नैनीताल लौट आए और वहां से पुनः दिल्ली होते हुए घर लौट गए
       यह कंद पंडित जी उखाड़ना नहीं चाहते थे परंतु वह कुछ तो मुझे ज्ञान देने के लिए और कुछ इससे संबंधित प्रयोग करने के लिए उस अकाउंट को उखाड़ना पड़ा था। पंडित जी ने बतलाया कि मुझे इसके बारे में हल्की सी जानकारी थी क्योंकि सीताराम स्वामी ने पूरे भारत में मात्र 6 स्थानों पर तेलिया कंद होने की जानकारी दी थी। उनमें से एक स्थान यह भी था इसमें पहले भी मैं इधर तीन चार बार आया था परंतु इस पौधे की खोज नहीं हो सकी थी या इसके बारे में मालूम नहीं पढ़ सका था।
                साल भर पहले जब मैं सीताराम स्वामी के पास पुनः गया था और उन्हें बताया था कि तेलिया कंद का पता नहीं लगा है तब उन्होंने मुझे बताया था कि दिन को तो इस पौधे को पहचाना ही नहीं जा सकता, क्योंकि इसकी पहचान यही है कि रात में इसके तने और इसके पत्ते जुगनू की तरह चमकते हैं।
              घर आकर पंडित जी ने इस कंद से कई प्रयोग और लगभग 108 प्रकार की दवाई तैयार किए। वे सभी गुरु की आज्ञा न होने के कारण मैं लिख नहीं पा रहा हूं परंतु मैंने देखा है कि यह औषधियां आश्चर्यजनक और अद्भुत है। वस्तुतः तेलिया कंद पौधे का प्रयोग भाग अपने अपने आप में दि दिव्य गुण समेटे हुए हैं।
              लेख के प्रबंधन में इस औषधि के लाभ और जिन रोगों पर इसके प्रभाव बताएं हैं या आयुर्वेदिक विशेषज्ञ द्वारा आयुर्वेद ग्रंथों में इसके लाभ के बारे में जो कुछ बताया गया है वह तो शत प्रतिशत सही है ही, परंतु इसके अलावा भी इससे सैकड़ों तरह की दुसाध्य बीमारियों का निदान भी हो सकता है। अभी तक संसार कैंसर की बीमारी का इलाज खोजने में समर्थ नहीं हो पाया है, और उनको यह भी ज्ञात है कि कैंसर का इलाज एकमात्र तेलियाकंद से ही संभव हो सकता है।
                 परंतु अभी तक संसार को तेलियाकंद के बारे में प्रमाणित जानकारी नहीं मिल पाई थी,पर इस खोज से आयुर्वेद जगत में सुखद आश्चर्य है परिवर्तन हुआ है और निश्चय ही आने वाली पीढ़ियां है इसका मूल्यांकन कर सकेगी कि इसके खोज से संसार को कितना लाभ हो पाया है।

Note- पोस्ट में "मैं" शब्द का मतलब उन साधकों से है जो इस घटना के साक्षी भूत रहे हैं।

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