इंद्राप्सरा साधना


आज के युग में आप मानो या ना मानो पर हम आप को मानने के लिए बाध्य कर देंगे कि,आप इस प्रयोग को करें,मंत्र जपे,कानों में घुंघरूओ की खनखनाहट सुने, आंखों से नृत्य देखे और परिवार को अपनी समृद्धि धन और श्रेष्ठ​ता दिखाकर आश्चर्यचकित करें!  
                          वास्तव,में आज के युग में मानना, की अप्सरा का नृत्य देखा है या देखा जा सकता है, कानो से घुंघरू की झंकार आहट सुनी है....... असंभव ही लगता है। मैं भी यही समझता था, कि यह कैसे संभव हो सकता है कि मंत्र जपे और आंखों से नृत्य देखे या कानों से घुंघरू की खनखनाहट सुनें........ पर जब मैंने साक्षात्कार किया तो मुझे भी बाध्य होना पड़ा, यह मानने के लिए कि असंभव जैसा कुछ भी नहीं है। मैं एक साधारण परिवार से संबंधित था  चूकि मेरी दोस्ती गांव के जमीदार के पुत्र से दिया थी,अतः मैं उसके साथ ही पूरे दिन मौज मस्ती करता रहता था, उसे घुड़सवारी का शौक था, उसके साथ मैं भी घुड़सवारी सीख लिया था। हम दोनों भिन्न-भिन्न परिवार से होते हुए भी एक ही परिवार से संबंधित लगते थे। जमीदार का स्नेह भी मुझ पर अत्यधिक था।
   परंतु पिताजी को किन्हीं कारणों से उसके गांव से निकलकर एक बड़े शहर में जाना पड़ा। वहां जाकर पिता जी ने व्यापार शुरू किया और वहां पर उनका व्यापार अच्छा चल पड़ा। वहां पर मैं भी आगे पढ़ने के लिए स्कूल जाने लगा। धीरे-धीरे मैं गांव के वातावरण को भूल पढ़ाई में व्यस्त होता चला गया।
        तकरीबन 2 वर्ष बाद मुझे अपने दोस्त का पत्र मिला पत्र इतना आत्मीयतापूर्ण था, कि चाह कर भी  वहां जाना स्थगित न कर पाया और पुनः अपने दोस्त से मिले 2 वर्ष बाद उसी गांव में पहुंचा।वहां पहुंचा तो देखा कि अब वह एक अजीब सी भेष भूषा में रहने लगा है, मैं तो उसे देखकर संसय में पड़ गया कि इसे क्या हो गया है। गांव भी इन 2 वर्षों में काफी बदला हुआ लग रहा था।जमीदार साहब भी बाहर से प्रसन्न तो दिख रहे थे, पर साथ ही साथ कुछ परेशान भी लग रहे थे। उन्हें परेशान देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं पूछ ही बैठा क्या बात है जमीदार साहब आप परेशान से लग रहे हैं, अगर मैं आपकी परेशानी हल कर सकूं तो मुझे प्रसन्नता होगी।
       चुकी मेरे और उनके पुत्र के मध्य के घनिष्ठ संबंध को वे जानते थे, और मुझे भी भी अपने पुत्र जैसा स्नेह देते थे, इसी आत्मीय संबंधों के कारण वह मुझसे खुलकर अपने मन की बात कहने लगे जिसके कारण भी चिंतित थे। उन्होंने कहा- "तुम्हारे जाने के बाद 2 वर्षों में अनेक घटनाएं घटी है उन घटनाओं के कड़ियों को जोड़ता है तो परेशान हो जाता हूं........"
          उन्होंने उन 2 वर्षों की घटनाओं को संक्षेप में बताना शुरू किया तुम्हारे जाने के बाद छोटे जमीदार साहब अकेले हो गए थे वे दिन दिन भर घर से गायब रहते, पूछने पर कुछ नहीं बताते....... महीने भर तक तो यही क्रम चला,फिर वे रात को भी प्रायः घर नहीं आते। वह कहां जाते हैं यह देखने के लिए कई बार लोगों को उनके पीछे भेजा, तो यही पता चला कि गांव के बाहर जो खंडहर है, वही जाते हैं.......... यह क्रम करीब 6 महीने चला।
           6 महीने बाद तो वहीं जाकर बस गए, अजीब सा पीर फकीर जैसा वे वेशभूषा में।कभी घर बुलाता तो वह साफ मना कर देते थे। मैं स्वयं भी उन्हें लेने कई बार गया परंतु उन्होंने मना कर दिया।
      उनके जाने से मैं बहुत परेशान रहने लगा, तुम्हें तो पता है कि वह मेरे एकमात्र पुत्र हैं, उनकी जाने पर मैं अपने व्यापारिक कार्यों में ध्यान नहीं दे पाया। मुझे लगने लगा कि मैं यह सब किसके लिए कर रहा हूं........ पुत्र है, तो वह अब नहीं के बराबर। उनको जब भी वापस लाने जाता, तो एक ही उत्तर मिलता "पिताजी मुझे आना होगा तो मैं स्वयं ही आ जाऊंगा।"
         पुत्र के वापस आने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी, मेरी भी अब व्यापारिक कार्यों में रुचि हटती चली गई और धीरे-धीरे कारोबार समाप्त होने को आया और मैंने व्यापार को संभाल ना पाने के कारण उसे समाप्त कर दिया, कि 1 वर्ष बाद अकस्मात में पुनः वापस आ गए........... और जब से आए हैं तब से रोज रात को कहीं जाते हैं और सुबह वापस आते हैं।उनके आने पर उनके ही आग्रह पर पुनः अपना व्यापार शुरू किया और उन्होंने ही व्यापार को संभाला परंतु जब से उन्होंने व्यापार संभाला है तबसे धन की वर्षा होती है और समृद्धि पहले से अधिक हो गई है। इसी कारण मेरे मन में संशय हो रहा है कि इतने अधिक धन वर्षा कैसे हो रही है। मैं तो आश्चर्यचकित हूं कि जो व्यापार समाप्त हो गया था उससे अचानक धन वर्षा कैसे हो रही है?
      इसीलिए मैं परेशान हूं कि कहीं यह धन उनके गलत कार्यों का फल तो नहीं..........इतना कहते-कहते उनकी आंखे नम हो गई,परंतु शीघ्रता से स्वयं को संभालते हुए उन्होंने आगे कहा-" हमारी इस गांव में बहुत इज्जत है। अगर ऐसा कुछ है तो जो हमारे लिए बदनामी की बात है मैं चाहता हूं कि तुम मुझसे बात करो और पता करो कि यह सब क्या घटना घट रही है।मुझे उनके वापस आने से बहुत अधिक खुशी हुई है परंतु इस आश्चर्यजनक परिवर्तन को देखकर हृदय से प्रसन्न नहीं हो पा रहा हूं....... मेरे मन में संशय उत्पन्न हो गया है- इसका निराकरण करो।"
        मैंने उन्हें आश्वासन दिया -"आप चिंता मत कीजिए मैं आपको वास्तविकता वास्तविकता का पता लगा कर बताऊंगा।"
   मैंने उन्हें आश्वासन तो दे दिया परंतु मैं स्वयं में संशयग्रस्त था, कि मैं जमीदार साहब का यह कार्य कर पाऊंगा या नहीं, पता नहीं मेरा मित्र मुझ पर विश्वास करेगा या नहीं। फिर भी मैं भगवान को स्मरण कर वास्तविकता को जानने की प्रबल इच्छा से उससे बात करना ही उचित समझा। मुझे मेरे मित्र का रात को बार बार बाहर जाने के समय का पता चल गया था मैं उसी समय उस के पक्ष में पहुंचा और उसे कहीं जाने की मुद्रा में तैयार देखा,तो उत्सुकता से पूछा-"कहीं जा रहे हो क्या?"
" हां"
-"क्या मुझे भी अपने साथ ले चलोगे?"
 वह रुका और बोला-"आज नहीं मित्र!पर कल तुम्हें अवश्य ले चलूंगा।"
          मैंने उसे कुछ नहीं कहा, जाने दिया वह एक घोड़े पर सवार हो गया रात के घना घोर अंधकार में लुप्त हो गया। मैं देर तक उसके घोड़े की आने वाली टापू की आवाज सुनता रहा और वहां बाहर लान में टहलता रहा।
                                                  करीब 5:00 बजे जब सूर्य की किरणें आकाश में उपस्थित हो पृथ्वी को चूमने लगी, मुझे घोड़े पर आता मेरा मित्र दिखाई दिया।मैंने देखा कि उसके चेहरे पर लावण्य झलक रहा है। उस समय उसकी आंखों की तीव्रता को शायद ही कोई सहन कर पाता। उसका चेहरा बहुत ही सुंदर लग रहा था, कुल मिलाकर वह अत्यंत आकर्षक लग रहा था। मैंने उसका ऐसा रूप पहली बार देखा था और स्तंभित सा देखता ही रह गया।
              वह घोड़े से उतर गया और मेरी ओर हौले से मुस्कुरा कर अपने कक्ष में चला गया।
      उसके आने के बाद मैं भी अपने कक्ष में चला गया और स्नान वगैरह कर आराम करने लगा दिन के 10:00 बजे मुझे मेरे मित्र ने बुलवाया, मैं उससे मिलने पहुंचा, तो उसे देखने पर मुझे उसमें सुबह वाली कोई चीज नहीं दिखी। वह कुछ बोलता, उससे पहले ही मैंने उत्सुकतावश पूछ लिया- यह परिवर्तन कैसा है? यह क्या है? इसका क्या रहस्य है तुम कहां जाते हो?प्रातः जो आकर्षण तुम्हारे चेहरे पर था वह इस समय क्यों नहीं है?
    वाह मेरे इतने सारे प्रश्नों को सुनकर हंसा और बोला-" तुम मेरे अंतरंग मित्र हो, तुम्हें यही सब बताने के लिए ही तो बुलाया हूं इन 2 वर्षों में जो कुछ घटा है वह तुम्हें बताना चाहता हूं।"
       मैं जानता हूं कि तुम कल पिताजी से मिले हो और पिताजी के मन में यह संशय है कि मैं गलत कार्य कर रहा हूं,गलत लोगों के बीच फंसा हू। तुम वास्तविकता जानना चाहते हो और मैं भी एक मित्र के नाते तुम्हें सब बताऊंगा। मैं तुमसे एक प्रार्थना करता हूं कि तुम पिताजी के मन से इस संशय को समाप्त करने में मेरी मदद करो क्योंकि मैं ऐसा कोई कार्य नहीं कर रहा हूं।
                    तुम्हारे जाने के बाद मैं बहुत अकेला रह गया, मैं दिन भर उन्ही स्थानों पर घूमता रहता,जहां हम दोनों एक साथ खेलते हुए घूमते थे। करीब महीने भर बाद मुझे जंगल में एक बाबा मिले। उन्होंने मेरी ओर देखा और उपेक्षित भाव से चल दिए। मैं यह सहन नहीं कर पाया और उनके पीछे पीछे चल दिया,परंतु तेज धूप और सुबह से भूखा प्यासा रहने से बेहोश हो गया।
          जब मुझे होश आया, तो देखा वही बाबा बैठे हैं। मैं स्वयं में कमजोरी अनुभव कर रहा था, अतः पुनः लेट गया बाबा कुछ पूजा कर रहे थे। अचानक वहां सुगंध तैरने लगी मैं आश्चर्य में पड़ गया है कि बाबा ने ना तो धूप जलाई है और ना ही अगरबत्ती और ना ही पुष्प.......तो फिर यह सुगंध कहां से आ रही है?
           अगले दिन जब हमें स्वस्थ हुआ, तो बाबा से पूछा कि यह सुगंध कहां से आ रही थी। बाबा ने कोई उत्तर नहीं दिया बल्कि मुझे हजार रुपए पकड़ाते हुए कहा, कि मैं अपने घर जाने के के लिए किसी गाड़ी का इंतजाम कर लो मैं वहां से निकला थोड़ी ही दूर पर मुझे गाड़ी नहीं मिल गई है और मैं घर आ गया।घर पर आकर मैं सोचता रहा कि वह सुगंध किसकी थी और फकीर के भेष में रहने वाले बाबा के पास हजार रुपए कहां से आये........ मेरा मन संशयग्रस्त हो रहा था।
        मैं अगले दिन पुनः उस स्थान पर पहुंचा जहां पर बाबा जी रहते थे।एक तरह से उनके व्यक्तित्व मुझे आकर्षित कर लिया और मैं रोज रोज वहां जाने लगा।शुरू में तो वह मुझे भगा देते हैं,कुछ ऐसा कराते कि मेरा मन तृष्णा से भर उठता,लेकिन अगले रोज फिर मेरे कदम उधर बढ़ जाते। मेरा रोज रोज वहां जाने से धीरे-धीरे घनिष्ठता स्थापित हो गई। वे मुझे अपने अनुभव बताते, बातों बातों में ही मुझे पता चला कि वह तांत्रिक क्रियाओं के ज्ञाता है और मुस्लिम तंत्र में उन्हें विशेष महारत हासिल है।
           "धीरे धीरे वे मुझे प्रयोग भी सिखाने लगे,मुझे भी इसमें आनंद आने लगा।मैं बाबा के साथ करीब साल भर रहा, उनके साथ रहकर ही मैंने जाना कि तंत्र वास्तव में कितना श्रेष्ठ और कितना विस्तृत है,तथा साथ ही जान सका कि उन हजार रुपए का रहस्य जो उन्होंने मुझे दिया था, जान सका उस सुगंध का रहस्य जो मैंने अनुभव किया था।
                                             उन्होंने मुझे सुलेमानी तंत्र के अनुसार होने वाली साधना इंद्राप्सरा लक्ष्मी साधना जो वर्ष में सिर्फ 1 दिन ही की जाती है बताएं और उन्होंने मुझे वह साधना अपने सामने संपन्न भी कराई। कल रात मैं उसी साधना को पुनः विधि पूर्वक संपन्न करने के लिए गया था। चुकिं मैं तंत्र साधना की ओर प्रवृत्त था और मुझे डर था, कि कहीं पिताजी को यह गलत ना लगे, इसलिए मैं बाहर एक विशेष स्थान पर जाकर साधनाएं करता था। व्यापार में जो अचानक प्रगति हुई है वह उसी साधना का प्रभाव है।"
        उन्होंने मुझे यह भी बतलाया कि उसने साधना को संपन्न कर उससे अप्सरा का नृत्य भी देखा है। मैंने अविश्वास प्रकट करने पर उससे अपनी साधना बल के माध्यम से मुझे उसकी घुंघरू की झंकार भी सुनाई और कहा की नृत्य वही देख पाता है जिसने यह साधन संपन्न की हो, बिना साधन संपन्न के नेत्रों में इतनी क्षमता नहीं आ सकती कि उसे कोई देख सके।
                 उसकी बात सुनकर पहले तो मैं आश्चर्य से भर उठा, परंतु जब उसने मुझे पूरी साधना संपन्न करवाई और मैंने इस बात की सत्यता को प्रत्यक्ष एवं प्रमाणिक रुप से स्वयं देखा और अनुभव किया तो मुझे भी उसके बाद मनाने के लिए बाध्य होना पड़ा वास्तव में यह साधना अद्वितीय है। इस साधना को संपन्न करने के फलस्वरुप मेरे परिवार में भी धन में आश्चर्यजनक वृद्धि हो गई।

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