तेलिया कंद-2


मैं पहली बार ही श्रीमाली जी से मिला था और एक 2 मिनट इधर उधर की बात होने के बाद मैंने निवेदन किया कि मुझे पता चला है कि आपने सीताराम बाबा से कुछ अचूक नुस्खे प्राप्त किए हैं और आपका आयुर्वेद ज्ञान असीमित है।
     परंतु उन्होंने मुझे भुलावे में डालने के लिए कहा कि मैं तो थोड़ा बहुत ज्योतिष जानता हूं, आयुर्वेद के बारे में मैं क्या बता सकता हूं। मुझे इसकी कोई विशेष जानकारी नहीं है मैं एक बार तो चकरा गया क्योंकि उनकी बातों से बिल्कुल ऐसा ही लग रहा था कि उन्हें वास्तव में ही आयुर्वेद के बारे में कुछ भी जानकारी नहीं है, परंतु मुझे पक्के तौर पर सूचना सीताराम स्वामी के घर से प्राप्त हुई थी अतः मेरा मन यह कह रहा था कि श्रीमाली जी कुछ छिपा रहे हैं।
   बाद में मेरी बात सही निकली वास्तव में ही वह अपने आप को बहुत ही छिपा कर रखते हैं, और कुछ भी स्पष्ट करने को तैयार नहीं होते, उनका पहचान यह है कि वह अपने आप को एकांत में प्रचार प्रसार से दूर ही रखना चाहते हैं। बाहर से कई लोग उनसे मंत्र आदि सीखने के लिए आते हैं और काफी लोग शिष्य बनने की भावना भी लेकर उनके पास पहुंचते हैं परंतु वे उनको बहलाकर या फुसलाकर वापिस भेज देते हैं, उनकी यह प्रवृत्ति नहीं है कि शिष्यों की भीड़ एकत्रित की जाए।
                 परंतु कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो डटे रहते हैं ।20 बार बुलाते हैं तो 20 बार भी पहुंचते हैं पंडित जी हर प्रकार से उनकी कड़ी परीक्षा लेते हैं और विशेष रूप से यह देखते हैं कि मेरे प्रति उसके मन में कितनी गहराई के साथ श्रद्धा या विश्वास है इस संबंध में पूर्णतः निश्चिंत होने के बाद ही वे उसे स्वीकार करते हैं।
                मैंने जब उनसे आयुर्वेद के ज्ञान के बारे में जानकारी प्राप्त करने की इच्छा प्रकट की तो उन्होंने अत्यंत सादगी और भोलेपन से जवाब दिया कि उन्हें कुछ भी नहीं आता, परंतु मेरा मन इस बात की साक्षी दे रहा था अब तो बहुत भटक चुका हूं, यदि कुछ मिल सकता है तो यही कुछ मिल सकता है।
             मैं तीन-चार दिन तो धर्मशाला मे रहा और  जब धर्मशाला से मुझे निकाल दिया तो मैं किसी होटल में ठहर गया, परंतु होटल में रहना काफी महंगा हो रहा था इसी बीच मैंने यह ज्ञान प्राप्त कर चुका था कि बिना जमकर बैठे यहां से कुछ भी प्राप्त नहीं होगा हो सकेगा, अतः मैंने हाई कोर्ट कॉलोनी के निकट ही एक कमरा किराया पर ले लिया।
      मैं नित्य स्नान आदि कारणों से निवृत होकर उनके घर पहुंच जाता नित्य सैकड़ों व्यक्ति बाहर से मिलने के लिए आते। घर के लॉन में बैठकर जाता मैं यथासंभव उन आने वाले व्यक्तियों की सेवा सुश्रुपा लगा रहता। दिन भर में 2 या 5 मिनट के लिए पंडित जी से मिलना होता
      1 सप्ताह बाद उन्होंने कहा कि तुम यहां अपना समय व्यर्थ कर रहे हो अपने घर चले जाओ और बाद में कभी आना
           मैंने निवेदन किया कि घर जैसा अस्तित्व तो इस संसार में मेरा है ही नहीं शादी की नहीं है, पिताजी का देहांत हो चुका है और परिवार में कोई है नहीं, अब यही पर एक कमरा किराये पर ले लिया है।
          तो उन्होंने बताया कि यहां रहने से कोई फायदा नहीं होगा और यह भी समझ लो कि मैं अपनी तरफ से रुपए पैसे के मामले में कोई सहायता नहीं करूंगा किराया देना हो या अपनी भरण पोषण करना हो वह तुम स्वयं जानो।
            मैं कुछ बोला नहीं और मन में यही निश्चय किया कि अब मैं डरूंगा नहीं और ना ही विचलित होऊंगा जो भी होगा देखा जाएगा।
      मैं नित्य इनके घर जाता, विभिन्न प्रदेशों से विभिन्न तरह के लोग वहां आते मैं उनकी सेवा करता, पानी पिलाता है या उनको जो जानकारी चाहिए थी वह देता इन आगंतुकों में धनी वर्ग होते तो मजदूर और सामान्य गृहस्थी भी, पाखंडी और ढोंगी साधु होते, तो उच्च कोटि के योगी भी ।मैंने इस अवधि में श्रेष्ठ वैद्यो को भी उनसे मिलने के लिए आते और परामर्श लेते हुए देखा है।
     इस प्रकार लगभग 6 महीने बीत गए। 6 महीने की अवधि बहुत बड़ी होती है परंतु मैं तनिक भी विचलित नहीं हुआ, मैं प्रातः स्नानादि कर 10:00 बजे के लगभग उनके घर पहुंच जाता और लॉन में अन्य लोगों के साथ बैठा रहता। रात्रि को जब अंतिम व्यक्ति उनसे मिलकर जाता तब मैं भी उठ कर अपने कमरे में चला आता।
      कई बार तो 15-15 दिन तक पंडित जी से मिलना ही नहीं हो पाता, एक दो बार तो वे कृत्रिम गुस्से भी हो गए और मुझे कहा कि तुम्हें चले जाना चाहिए और शादी वगैरा करके अपना घर बसा लेना चाहिए ।मैंने मन ही मन सोचा कि अब शादी ब्याह क्या करना है अब मेरा भविष्य तो आपके ही हाथों में है।
       परंतु मैं बोलता कुछ नहीं, कई बार उन्होंने अपने पांव ही छूने नहीं दिए,परंतु मैं यह सब समझ रहा था कि यह केवल दिखावटी और ऊपर ही गुस्सा है, इसके नीचे तो अत्यंत कोमल हृदय है, प्रेम और स्नेह की बहती हुई रसधारा है, मैं तनिक भी विचलित नहीं होता।
         6 महीने बाद एक दिन मुझे बुलाकर कहा कि तू बहुत पक्का और दृढ़ निश्चय ही है रे-
        इसके बाद धीरे-धीरे पंडित जी ने मुझे आयुर्वेद के बारे में जानकारी देनी शुरू के 1 दिन बातों ही बातों में उन्होंने कहा कि मैं जानता हूं कि तू यहां क्यों आया है, तू तेलिया कंद के बारे में विशेष रूप से जानने के लिए आया है और जीवन में पूर्णता प्राप्त करने की तेरी उत्कृष्ट इच्छा है। मैंने नम्रता पूर्वक स्वीकार किया और अपने इच्छा को उनके सामने प्रकट कर दिया।
       इस प्रकार 3 महीना बीत गए 1 दिन बातचीत का विषय तेलिया कंद पर ही चल पड़ा और उन्होंने दृढ़ता के साथ कहा कि तेलिया कंद भारतवर्ष की भूमि पर है, और इसके कई पौधे मेरी जानकारी में है मैंने स्वयं उनको देखा है, उनका प्रयोग किया है और आयुर्वेद ग्रंथों में उनकी प्रशंसा के बारे में जो कुछ लिखा है वह सब अक्षर-अक्षर सही है यही नहीं अपितु उसके बारे में जो कुछ लिखा क्या है वह तो बहुत कम है इसका महत्व तो उससे भी कई गुना ज्यादा है।
    अब मुझे धीरे-धीरे पंडित जी का साहचर्य मिलने लगा और कभी-कभी तो कल्पित क्रोध वह अपने चेहरे पर चढ़ा लेते थे वह भी दूर हो गया, साथ ही साथ उन्होंने एक दिन बैठकर मेरे भाग्य के बारे में देखा और बताया कि तुम आयुर्वेद के क्षेत्र में ही सफलता प्राप्त कर सकते हो और इसी क्षेत्र में तुम्हें उन्नति करना है।
     बाद में जब भी उनको समय मिलता मैं उनके पास बैठ जाता और वह मुझसे कई प्रकार के आयुर्वेदिक संबंधी नुस्खे मुझे बताते। सही बात तो यह है कि उनके पास आयुर्वेद संबंधी जो मौलिक प्रमाणिक और नवीन ज्ञान है, वह आयुर्वेद के ग्रंथों में ढूंढने पर भी नहीं मिलता उन्होंने इन सारे कार्यों को व्यक्तिगत रुप से किया है और उन्हें इसका अनुभव है, जब भी किसी औषधीय जड़ी बूटी के बारे में चर्चा चलती तो वे प्रमाणिक रुप से इसका उत्तर देते हैं इनके उत्तर के पीछे उनका ठोस ज्ञान होता है।
     मैं आयुर्वेद का जानकार हूं और मुझे यह स्वीकार करने में कोई हिचकिचाहट नहीं है कि आयुर्वेद के ग्रंथों को पढ़कर कोई भी भली प्रकार से चिकित्सा नहीं कर सकता और ना ही उस चिकित्सा से रोगी संतुष्ट हो सकते हैं
    उन्होंने बाबा सीताराम से प्राप्त नुस्खों को भी सरलतापूर्वक मुझे पूरी की पूरी जानकारी दी इसके लिए मैं उनका जीवन भर ऋणी रहूंगा।
     इन औषधियों से आमाशय से संबंधित रोग, दाग,गुदा रोग, शूल, सूजन,पांडु रोग,जलन,खांसी,दमा,कमला, गुर्दे की पथरी, मूत्र संबंधी रोग,मधुमेह,शक्तिया निवारण,खूनी बवासीर,सुजाक,अतिसार निवारण,काम शक्ति प्रबलता,कुकुर खांसी,पेट से संबंधित विकार,एक्जिमा,मुंह के छाले,पीलिया अंडवृद्धि रोग,दात्सुल, आंख का खिंचाव, बहरापन,कैंसर,श्वेत प्रदर,खुजली,कब्जी,हृदय की दुर्बलता आदि कई रोगों से संबंधित उपचार उन्होंने मुझे सिखाएं और औषधि की भी क्षमता से विवरण बताया यहीं नहीं अपितु उन्होंने अपने सामने औषधीय को तैयार करने की विधि भी बताई।

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