प्रिय वल्लभा किन्नरी


किन्नर यानी कि मनुष्य और देवताओं के मध्य की कड़ी,वरदायक शक्ति संयुक्त अद्भुत सम्मोहन कारी प्रभाव से सिद्ध साधक को पूर्णता देने में सक्षम।
          अप्सराओं से अधिक मादक, प्रवीण और धन्य धान्य से परिपूर्ण कर देने की कला जानने वाली विशिष्ट देवी..........
      जिस तरह से इस संसार में आमोद-प्रमोद मनोरंजन के कई उपाय हैं ठीक उसी तरह से साधना जगत भी अपने में कोई आयाम समेटे हैं, जो सही अर्थ में साधक होते हैं उनके जीवन में विविध पक्ष होते हैं वास्तविक साधक जीवन का केवल एक ही पक्ष, साधना करना ही नहीं रह जाता वह तो जीवन के सभी पक्षों को जीता है, प्रत्येक आयामो को समझता है -जैसे कोई बलशाली और सुदृढ़ युवक किसी ऊंची पर्वत की चोटी पर कभी इस मार्ग से चढ़ाने का हौसला और दमखम रखें, तो कभी उस मार्ग से। उस में हठ समाई हो कि वह प्रत्येक मार्ग का सौंदर्य निहारेगा ही, उसने कूट-कूटकर आग्रह भरा हो कि वह जीवन का संपूर्ण सौंदर्य जी ही लेगा। यह सच है की तलहटी के सभी रास्ते पर्वत की चोटी तक जा रहे हैं लेकिन हम क्यों ना हर मार्ग का आनंद लें, फिर भले ही उबड़ खाबड़ मार्ग मिले या घने जंगलों में से होकर गुजरा या सुरम्य फूलों भरा मार्ग मिला। हिंसक पशुओं वाला मार्ग मिला तभी तो जीवन का रोमांच ही होगा।
        यह होती है साधक की भाव भूमि और ऐसे ही भाव से भरे साधक जीवन में उतार सकते हैं कोई भी साधना। सौंदर्य साधनाएं तो ऐसे ही साधकों के आसपास खेलती सी रहती है। अप्सरा साधना,यक्षिणी साधना,किन्नरी साधना ऐसे ही साधकों के लिए गढी गई है, क्योंकि ऐसे साधक इस भावभूमि से भली भांति परिचित होते हैं, जिस पर रहकर ऐसी साधनाओं को सिद्ध किया जा सकता है,और किसी अप्सरा या किन्नरी के प्रकट होने पर कैसा व्यवहार किया जाता है, कैसे उसे जीवन में उतार लिया जाता है, और उसका उपयोग किया जाता है।
            किन्नरी साधना को लेकर मैं भी प्रारंभ में सामान्य साधक की तरह शंकालु और कुछ हद तक भयग्रस्त भी था,क्योंकि प्रचलित धारणाओं से किन्नरी को लेकर मन में छवि ही ऐसी बन गई थी, फिर भी मैं कौतूहलवश साधना में बैठ गया मेरा कोतूहल था कि मैं अप्सरा वर्ग के अनुभव को तो परख चुका हूं अब आजमा कर देखू की किन्नरी वर्ग में क्या विशेषताएं हैं,और अप्सरा की अपेक्षा किन्नरी में क्या अलग गुण होते हैं, क्यों वह अवसरों वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ कहीं गई है
               प्रारंभ मे मुझे असफलताएं मिली और कोई भी अनुभूति नहीं मिली ।मैंने पूज्य गुरुदेव से फोन करके इस विषय में कारण जानना चाहा, जिससे प्रत्युत्तर में उन्होंने खिन्न  न होने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया तथा भविष्य में सफलता प्राप्ति का आशीर्वाद भी प्रदान किया। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार की साधना में प्रारंभ में ही तुम जिस प्रकार की सफलताओं की आशा रखते हो वह कठिन होती है, किंतु असंभव नहीं। मेरा मन कुछ टूट सा गया था। उसी बीच मेरा स्थानांतरण भी हो गया तथा मैं स्थानांतरित होकर नागपुर चला गया मैं अपनी नौकरी और दैनिक जीवन चार्या में तथा नये स्थान से तालमेल बैठाने में फिर ऐसा व्यस्त हो गया कि किन्नरी साधना को भूल केवल दैनिक पूजा तक ही सीमित रह गया।
      मेरा नागपुर पहुंचने के कुछ दिनों बाद की घटना है कि मेरे कार्यालय में एक विशेष पद जो योग्य पात्र न मिलने के कारण कई माह से खाली पड़ा था, उस पर नियुक्त होकर एक प्रयः 27-28 वर्ष की आयु की युवति आई।उसकी आयु एवं पद के लिए वांछित योग्यता को देखते हुए हम सभी आश्चर्यचकित थे, कि कैसे उसने इतनी कम उम्र मे हीं ऐसी योग्यता प्राप्त कर ली है।सुदूर दक्षिण प्रांत से आए उस युवती का नाम अनुपमा था ,जो अपने नाम के अनुरूप ही वास्तव में अनुपम ही थी। वह अकेली ही कार्य करने के लिए वहां आई थी उससे उसके परिवार आदि के विषय में किसी ने कुछ विशेष नहीं पूछा।
     अनुपमा दक्षिण भारतीय होने के बाद भी गोरेपन की ओर बढ़ता हुआ गेहुआ रंग लिए थी, जो कि उसके स्वस्थ व ताजगी से भरे बदन से आती झिलमिलाहट में घुल मिलकर सुनहरी सी आभा देता था। हल्का भरा बदन,सामान्य से कुछ अधिक ऊंचाई और खुली हुई शरीर संरचना में उसके बदन का भरवा खिलकर निखर उठा था। प्रकृति रूप से उसके लंबे व घने बाल थे, जो कि किसी भी दक्षिण भारतीय युवती को प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य होता है, उस पर भी रोज करीने से लगी सफेद फूलों की वेणी जिसकी ताज़गी से उसका चेहरा भी वैसा ही स्वच्छ और धुला धुला सा लगता था।जब उनको वह कभी जुड़े की शक्ल में बांध देती थी और तब कहना कठिन होता था कि वह किस रूप में अधिक मोहक लगती है। गालों पर कुदरती लाली, बड़ी-बड़ी और गहरी काली आंखें जिसमें अभिमान भरा था।आकर्षण ठोड़ी और गहराई भरे रसीले होठ, जिन्हें वह कभी सजा देती थी अपने मन की तरह कोमल, हलके गुलाबी रंग, जामुनी रंग से।छोटे कानों की गोलिईयों को उसने कुछ और सवार दिए था मोतियों के बूंदों से जो, उसके चेहरे पर छाई मोतियों कि सी आभा से ही घुल मिल जाते थे।वह आभा जो किसी व्यक्ति के चेहरे पर अभिमान की आभा कही जा सकती है।
         गले में पतला सा मंगलसूत्र जिन्हें वह रह रह कर अपनी पत्नी अंगुलियों में घुमाती रहती थी।स्वस्थ भरी भरी कलाइयों में एक एक सोने की पतली चूड़ी, जो उसकी गोरी बाहों में सुडलता पर रह रह कर यू कौध सी फेकती मानो कहीं से सुनहरी धूप की कोई किरण आकर किसी अंधेरे कमरे में कौध जाए। बात करते समय उसके हाथ कभी-कभी बालों को हल्के से सवारते थे तो,कभी गले में पड़ी चेन को घुमाने से उसकी गोरी उठी बाहें यूं लगती थी कि अपनी थिरकन से वह बाहों में निमंत्रण का कोई संगीत छेड़ दिया हो।पतली पतली कोमल अंगुलियों में सादगी से पड़ी थी केवल एक मोती की अंगूठी। कानों की ही तरह बाहों के दूधियापन में खो गया एक और कीमती रत्न!जिसकी गुलाबी और उजली आभा उसकी अंगुलियों में घुल मिल गई थी।
                 मै उसे देखता तो सोचता कि यह तो खुद जो मोती जैसी है भला क्यों मोती धारण करती है, यह तो उसके बदन पर यूं ही बिखरे बिखरे हैं, लेकिन मोती ही उसका सही रत्न था। वह भी तो मोती की तरह है आभा और सुडौलता अपने अंगों उपांगों में संजोए थी। दो मोती ही तो उसके वक्ष स्थल पर ढले हुए थे -कुंचमंडल बनकर।उसकी स्वाभिमानी चाल से वह दोनों विशाल मोति यों थिरक उठते थे, जो किसी रूपसी के गले में पड़ी माला के मनके।उसकी मांंसल कमर जो पतली ना होने पर भी मादकता से भरी हुई जिसमें पड़े बल नाभि के पास लहरा कर आते हुए योंं गोते लगाते जैसे किसी गहरी नदी मे भवर पड़ी हो और वहां सारी लहरें जाकर खो जा रही हो। सारे कटि प्रदेश की मांंसलता,कटाक्ष,दूधियापन सब कुछ उस नाभि की भंवर में,उसकी गहरी भंवर में खोता सा दिखता था और उसका नितंब प्रदेश तो अपनी गढ़न को लिए छुपे छुपे ढंग से सभी पुरुषों के माध्यम चर्चा का केंद्र था।कितने भी ढ़ीली साड़ी वह क्यों न बांधी लेकिन आंतरिक कसाव छिपाए नहीं छिपती थी। दो जंघाओं की गठन झलक जाती थी जब कोई तेज हवा की लहर आकर उसके बदन को छू कर निकलते और सारे वस्त्र को शरीर से चिपका दे, ज्यो किसी मासूम बच्चे ने चुगली सी कर दी हो.......

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