सुगन्धमोदिनी अप्सरा


देवलोक की अद्वितीय सुंदरी जिसके अंग अंग से मादक सुगंध बिखरती है जो अपनी सुगंध से साधक को उन्मादित कर देती है और यह अप्सरा प्रत्येक साधक के लिए सहज सुलभ है ,क्योंकि यह देव अप्सरा मानव संपर्क में आने के लिए आतुर रहती है। और इसअप्सरा को आप भी अपनी प्रियतमा अपने सहकारी बना सकते हैं इस गोपनीय दुर्लभ प्रयोग को संपन्न करके........

       मैंने अप्सराओं के विषय में अत्यधिक रोचक प्रसंग सुन रहे थे, कि उनके साथ रहने पर हर क्षण ह्रदय में ताजगी का अनुभव होता है,परंतु अप्सराओं का साहचर्य किस प्रकार की आनंदभूति प्रदान करता है यह मैं प्रत्यक्ष अनुभव करना चाहता था।
                    इसके लिए मैं कई ऐसे साधकों से मिला जो स्वयं को कहते थे कि उन्हें अप्सरा को सिद्ध कर रखा है और अप्सरा उनकी सहचारी है। जब मैंने उनसे अप्सरा सिद्ध करने की विधि पूछी तो मुझे निराशा हाथ लगी, किसी किसी ने मुझे विधि तो बताई परंतु उससे मुझे नाम मात्र का भी एहसास नहीं हुआ।
        मुझे निराशा भी होती परंतु एक आस में मैं निरंतर अप्सरा साधना की विधि पाने के लिए बेचैन था। एक दिन मुझे मेरे एक मित्र ने बताया कि मेरे गुरुदेव डॉक्टर नारायण दत्त श्रीमाली जी हैं,यदि तुम उनसे जाकर मिलो तो हो सकता है कि तुम्हारी इच्छा पूर्ण हो सके।
     उसके कहने पर मैं उनसे दिल्ली में मिला।उनके चेहरे पर अद्भुत तेज झलक रहा था। मैं उनके व्यक्तित्व से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सका। उन्हें देखकर मुझे लगने लगा कि शायद यही पर मेरी मनोकामना पूर्ण हो जाए।
         मैं जब उनसे मिला और उनके समक्ष अपनी इच्छा व्यक्त की तो उन्होंने मुझे बताया अप्सरा एक या दो नहीं होती है अप्सराएं तो 108 प्रकार की होती है परंतु मानव को उसी अप्सरा को सिद्ध करने का प्रयत्न करना चाहिए जो उनके अनुकूल हो
उन्होंने मुझे सुगंधमोदिनी अप्सरा सिद्ध करने के लिए कहा और बताया कि यह अप्सरा शीघ्र ही प्रसन्न होकर सिद्ध हो जाती है।फिर उन्होंने मुझे अप्सरा साधना सिद्ध करने की विधि बताई और कहा कि इसे तुम यदि पूर्ण दृढ़ भाव और विश्वास से करो तो सुगंधमोदिनी अवश्य तुम्हारी सहचरी बनेगी।
       और उनकी आज्ञा अनुसार मैं इस साधना को संपन्न करने के लिए बैठ गया। मैं उनके निर्देशन में ही साधना को पूर्ण करना चाहता था,इसलिए दिल्ली में ही एक कमरा किराए पर लेकर यह साधना सिद्ध करने लगा। साधना 3 दिनो की ही थी। प्रथम दिन तो साधना भली प्रकार से बिना किसी भी विघ्न के संपन्न हो गया। मुझे कोई अनुभव नहीं हुआ मैं दुविधा मैं विचारों में झूलने लगा परंतु गुरुदेव की दृढ़ता और विश्वास की बात जो याद कर पुनः स्वयं के विचारों में स्थिरता स्थापित किया और दूसरे दिन की साधना संपन्न करने के लिए बैठा
       अभी मंत्र जप आधा ही हुआ था कि अचानक मुझे अनुभव हुआ कि जैसे मेरे आसपास के वातावरण में असंख्य फूल खिले हैं या इत्र छिड़का हुआ है जिसकी सुगंध से मुझे अत्यंत आनंद का अनुभव हो रहा था। धीरे-धीरे दूसरे दिन की साधना संपन्न हो गई,परंतु अगले दिन भी मुझे अपने शरीर में व्याप्त सुगंधा का एहसास हो रहा था,ऐसा लग रहा था कि मैंने इत्र में स्नान किया हो। मुझे अपने चेहरे पर कुछ अलग ही चमक अनुभव हो रही थी। स्वयं को अनुभव हो रहा था कि आनंद का झरना बह रहा हो।
     हालांकि एकांत में ही इस साधना को कर रहा था पर मैं जहां रह रहा था वहां पर अगल बगल के लोगों ने भी उस सुगंध का एहसास किया।
                 तीसरे दिन जब साधना शुरू की तो वह सुगंध और तेज होती जा रही थी साधना क्रम जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा था सुगंध का प्रभाव बड़ता जा रहा था,धीरे-धीरे मुझे एहसास होने लगा कि मेरे अलावा कोई और कक्ष में उपस्थित है,परंतु गुरुदेव की आज्ञा थी। कि जब तक पूर्ण मंत्र जप संपन्न ना हो जाए तब तक आसन को ना छोड़ो और ना ही मंत्र जप को रोको, दो मालाएं अभी बाकी थी कि मेरे सामने प्रत्यक्ष एक आकृति स्पष्ट हो रही थी जो किसी स्त्री की ही लग रही थी। मैंने मंत्र जप पूर्ण करके गुरुदेव को चरणों में प्रणाम कर दिया। गुरुदेव को प्रणाम करके जब मैं ने आंखें खोली तो मैं मंत्रमुग्ध सा सामने खड़ी आकृति को देखता रह गया। उसके पास से मुझे वैसे ही सुगंध का एहसास हो रहा था जो कि मुझे 2 दिनों से एहसास हो रही थी मैं उसके सौंदर्य को देखता रह गया चंद्रमा की भांति नेत्र को शीतलता प्रदान करने वाला मुख........ भू भंगिमा ऐसी प्रतीत हो रही थी जैसे कि कामदेव ने अपने धनुष की प्रत्यंचा खींची हो, घायल करने के लिए........... उसके होंठ जैसे गुलाब ने अपना गुलाबी रंग दे दिया हो...........कोमलता ऐसी कि यदि कोई छू दे तो  मैली हो जाएगी............. जगमगाता गौरवर्ण ज्ययो देवों की आभा सिमटकर सकार हो गई हो........... उसके समूचे सौंदर्य का वर्णन करना चाहता हूं,लेकिन कर नहीं पाता हूं बार-बार असफल हो जाता हूं,क्योंकि उसका स्मरण होते ही मैं विस्मृत हो जाता हूं।
     आज भी पूज्य गुरुदेव की कृपा से वह अप्सरा मेरी सहचारी बनी हुई है, और जब से उसका साथ मिला है वह पग पग पर मेरी सुख और दुख में मेरी सहयोगी बनी है। उसका साहचर्य प्राप्त कर स्वयं को धन्य अनुभव करता हूं।

   :- साधना विधि अगला पोस्ट में-:

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