रंजिनी अप्सरा


क्या होता है जब किसी स्त्री या पुरुष के जीवन में अकेला चलते-चलते एकाएक कहीं बांध देता है ऐसा क्यों होने लगता है कि कल तक जो जीवन अपने आप में ही खोया खोया और अपने आप में ही मगन था, या फिर किसी के लिए छटपटाहट से भर जाता है, किसी को निहारने के लिए उसकी बस एक झलक पाने के लिए और जब तक उसकी एक झलक नहीं देख पाती तब तक सब कुछ खाली खाली और सुना सुना लगता है। क्या बातें छुपी है इसके पीछे, क्या चेहरे की कोई खूबसूरती, क्या देह का आकर्षण, दिल की कोई धड़कन खो जाने या खो जाने के ही नहीं बल्कि चुरा लेने जैसे कोई बात है? फिर लगता है कि यह खोज ही गलत है। प्रेम करने वालों ने इतना कब सोचा होगा? वह तो बस कोई तो हो ही गए अब सच्चाई बताएं कौन?फिर तो कुछ कुछ पढ़ा जा सकता है वह गहराती हुई आंखों में छुपी मुस्कुराहट से और माथे पर बिखेर आई किसी लट को हौले से अंगुली के सहारे कानों के पीछे समेटती अदाओं से अगर खामोशी पढ़ने आती हो तो नाम सुनते ही चौक कर देखना कि कोई उसके छुपे धन को तो नहीं छीन रहा, यह भाषा होती है किसी प्रेमी या प्रेमिका की......
           पर प्रेमिका शब्द आते ही व्यक्ति यू चौक जाता है जैसे उसने कोई घोर पाप हो गया हो, और वह क्षेप कार आसपास कनखियों से देखने लगता है कि कहीं उसे किसी ने देख तो नहीं लिया। प्रेमिका के विषय में सारा चिंतन एकांगी और वासना पूर्ण रहा है। प्रेमिका का तात्पर्य केवल देह तक नहीं सीमित होता प्रेमिका तो एक पूर्ण स्वस्थ और सुरुचि संपन्न पुरुष के जीवन कि यदि कहा जाए रत्नजडित मुद्रिका है, तो गलत नहीं होगा। प्रेमिका का तात्पर्य है जो केवल अपनी और भाव-भंगिमाओं से ही नहीं वरना अपने हृदय की सारी आंतरिकता और मधुरता से किसी पर रीझ जाए, इस तरह से आपके जीवन के एक-एक पल पर छा जाएं और इतने अधिक आग्रह से हर पल को समेट ले कि सारा मन भीग जाए। सचमुच लगे कि कोई है जो केवल शब्दों से ही या हाव-भाव से नहीं बल्कि अपनी आंतरिकता से मुझसे प्रेम करती है। आंतरिकता की अनुभूति ही हृदय तक उतर कर पूर्ण तृप्ति देती है। इस जगत की स्त्री का प्रेम तो एक मात्र दैहिक छल से भरा हो सकता है लेकिन अप्सरा के साथ ऐसा कोई शब्द नहीं जुड़ा। अप्सरा तो एक ऐसा नारी है जो सख्त से सख्त दिलवाले को भी प्रेमी बनाकर छोड़ें और से कठोर हृदय वाला व्यक्ति भी रीझना सीख जाए। उसे फिर उसके सिवाय कोई न भाय। सोते जागते उसे की बातें, उसे की चाहत,आंखें खोए खोए अधमुदी हो जाए। उसमें कशिश और गुलाबी रंगते उतर आए और सब पुरुष के जीवन में उतार देती है अप्सरा उसकी प्रेमिका बन कर।
           मैंने रंजिनी अप्सरा की साधना की और वह मंत्रों के विशेष प्रभाव से पहली बार में ही मेरे सामने उपस्थित हो गई। सचमुच रंजिनी अपने नाम की ही तरह रंजनी है। खूबसूरत बड़ी-बड़ी आंखें और भोलेपन के साथ कोमलता से देखने कि उसकी वह अदा कि मुझे लगा ही नहीं कि मैं पहली बार उससे मिल रहा हूं। कुछ शर्म को ओढ़कर और कुछ शर्म को छोड़कर वह आगे बढ़ी आंखों को हल्का सा झुका कर और चाल में लज्जा की धड़कन भरकर मेरे हाथों को थाम लिया।नरम और शीतल स्पर्श से मैं जागा और अपने को समझाया कि मैं स्वपन नहीं देख रहा हूं। एक अनिन्य सौंदर्य मेरे सामने इसरार कर खड़ा है। उसकी बड़ी बड़ी आंखें बोल रही थी कि मेरे सांसो में ढली सौंदर्य को निहारो! सचमुच सिर से पांव तक वह सांचे में ढली थी। पीछे की ओर खींच कर बांधे घने बाल, उसके छोटे से गोल मुखड़े को और भी खिला रहे थे। पीछे घुटनों तक जाती घनी चोटी जो पूरी की पूरी फूलो और गहनों में सजी थी ,ऐसा लगा कि पृष्ठ का श्रृंगार उसने  वेणी को फूलों से भर कर  दिया हो। गोरे माथे पर छोटी सी दिपदिप करती सुनहरी बिंदी और नाक में लगी हीरे की कनी के बीच में उसकी आंखें, दोनों झिलमिलाहटो से भी अधिक झिलमिल आ रही थी। स्वस्थ कपोल छोटा सा चींंबुक, पतले और कुछ नीचे झुकते अधर और नरम और गुलाबी गानों में लटकते स्वर्ण के कुंडल छोटी और ऐसी कोमल गर्दन जिस पर जाती नसों की धड़कनें धुक धुक करके सहमी हिरण की तरह भाग रही थी। कंधो और बाहों के सौंदर्य को बिना छुपाए वक्षस्थल को ढक रखा था। लाल रंग के रेशम और सुनहरे कढे एक वस्तु से और पीछे पीठ पर बंधी वस्त्रों की छोटी सी गांठ यो लग रही थी ज्यो तट पर कोई गुलाबी मोती आकर गिर गया हो। नाभि के नीचे घुटनों तक जंघाओं को कसे वस्त्र, जो उसकी कटी और गहरी नाभि का सौंदर्य गुलजारी कर रहा था। लाल रंग के वस्त्रों में उसका यौवन पता नहीं उसके गोरे रंग को धधका रहा था, या मुझे लेकिन उसने अपने अंग प्रत्यंग को नख से शिखा तक जिस प्रकार से सजा रखा था वह उसके जीवन को श्रृंगारित करने के साथ-साथ उसके सुरुचि प्रियता को भी बता रहा था। पांव की एक-एक अंगुलियां तक का श्रृंगार उसने मन लगाकर किया था। मैं एकटक मुक्त होकर उसके श्रृंगार और श्रृंगार से भी अधिक उसकी सुरुचि प्रियता को देख रहा था, उसके व्यवहार को परख रहा था उसने जिस तरह से आगे बढ़कर मेरे हाथों को थाम लिया उससे उसने अपना समर्पण और प्रेम को बिना कुछ कहे ही कह डाला था। उसके अंग अंग से कांति के साथ सुगंध भी आ रही थी।
                            साधना के पहले ही दिन साधना सफल होने पर किसी भी अप्सरा को केवल भविष्य के लिए वचनबद्ध किया जाता है, उसको पुष्पों का हार, तांबूल, इत्र देकर स्वागत किया जाता है, और मैंने पहले दिन इसी परंपरा को निभाया। साधना के 2 दिन बाद तक मैं किसी और व्यस्तता के कारण व्यस्त रहा और अंजनी का आवाहन कर अपनी साधना की सफलता को परख नहीं सका। तीसरे दिन एकांत में अवसर मिलने पर जब हमें अकेलापन अनुभव हो रहा था, तब मैंने उसके आवाहन मंत्र का निश्चित संख्या में उच्चारण कर उसे बुलाया। रंजनी अपने वचन के अनुसार मेरे सामने आकर अपने मादक गंध के साथ बैठ गई। कुछ छेड़ने  और कुछ मोहित होने के मिले-जुले भाव लेकर वह होले होले पलके उठा कर मेरी ओर देखती रही और अपने पांव के अंगूठे से गुप चुप रहकर जमीन कुरेदती रही। मैंने निगाह उठाकर उसकी ओर देखा आंखों में उलाहना भरी थी जो सीधे मेरे अंदर तक उधर चली गई। मैंने कुछ बोलने से पहले बोली 2 दिन हुए तुम्हें तो मेरे लिए समय ही नहीं था। मैं उसकी आंखों में एक टक देखता आंखों ही आंखों से मुस्कुरा दिया। उसकी शिकायत भरे स्वर की नरमी से मेरे मन का तनाव कहीं हवा में तैर गया।
       प्रेमिका का अर्थ तो मैं रंजिनी की निकटता प्राप्त होने से ही समझ सका और रंजनी ने भी सभी बंधन तोड़ कर प्रेमिका की तरह ही मेरे साथ व्यवहार किया शुरू कर दिया, बाद में तो उसको बुलाने के लिए किसी आवाहन मंत्र की भी कोई आवश्यकता नहीं पड़ी, वह हर पल मेरे साथ रहने लग गई जब मैं सभी के बीच में रहता तो अदृश्य रहकर मेरे साथ रहती है और जब जरा सा भी एकांत हुआ  झट सपने पूरे श्रृंगार के साथ मेरे सामने आकर, मेरे साथ मेरे मित्र बन कर, कभी अपने रूप और यौवन से मुझे मुग्ध कर देती थी, तो कभी तनाव में देखकर वह अपनी बातचीत की अदा से बातों को कहीं और घुमाकर और इतने पर भी मैं ना मानूं तो मुझे छेड़ छेड़ कर अपने मादक गांधो से मेरे रोम रोम को सुगंधित कर जब तक मुझको हंसा नहीं देती थी तब तक अलग नहीं होती थी। धीरे-धीरे मैं उसके व्यवहार से इतना भीग गया कि उसके बिना एक पल भी नहीं रह पाता और यही हाल तो उधर उसका भी था।
         साधना विधि अगले पोस्ट में धन्यवाद......
       

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