मैं और मेरी प्रियतमा सौंदर्या-2


 उन्होंने बताया कि पूर्व जन्म में भी मैं उन्हीं का शिष्य था, और उन्हीं के प्रांगण में रहकर ही मैंने विशिष्ट साधनाएं में सिद्धि प्राप्त की थी ,जिनमें से एक "सौंदर्या यक्षिणी साधना" भी थी जिसे मैंने प्रेमिका रूप में सिद्ध किया था और वह मुझे प्रेमिका रूप में सिद्ध भी हुई, उसने मुझे अपनी सामीप्यता भी प्रदान की, लेकिन उसके प्रति कुछ अशिष्टता पूर्ण व्यवहार हो जाने से वह मुझसे रुष्ट हो गई और यह कहकर- "अब वह कभी नहीं आएगी" लुप्त हो गई ।
                       कुछ समय उसके साथ आनंददायक क्षणों को बिता देने के कारण मुझे अपनी गलती का एहसास हुआ और पुनः उसे साधना द्वारा प्राप्त कर लेने का निर्णय कर उस अद्वितीय साधना को मैंने संपन्न किया परंतु उसमें सफलता हाथ ना लगी,जिस कारण मैं बहुत दुखी रहने लगा और गुरुदेव से प्रार्थना की कि मैं पुणे उसे प्रेमिका रूप में सिद्ध करना चाहता हूं, क्योंकि उसके चले जाने से विभिन्न प्रकार की विपरीत परिस्थितियों ने मुझे जकड़ लिया और जब मैं शारीरिक मानसिक तथा आर्थिक दृष्टि से भी कमजोर हो गया तब मुझे ज्ञात हुआ कि मेरे जीवन की सफलता और पूर्णता के का श्रेय तो उस यक्षणी को ही जाता है उसने मुझे हर दृष्टि से संपन्न और आनंद प्रदान किया था।
               मैंने गुरुदेव से इस साधना में पुनः सफलता ना मिल पाने के कारण पूछा तो उन्होंने कहा- मुझे उस यक्षिणी के साथ अत्यधिक माधुर्य, कोमलता और प्रेमय व्यवहार करना चाहिए था क्योंकि अभद्रता पूर्ण व्यवहार से वह अपनी दी हुई सुख संपन्नता आनंद को छीन लेती है और उस साधक के जीवन से हमेशा हमेशा के लिए चली जाती है।
फिर उन्होंने कहा तुमने अपनी गलती का एहसास किया है इसलिए मैं तुम्हें आशीर्वाद देता हूं कि तुम्हें वह प्रेमिका रूप में ही प्राप्त हो लेकिन यह इस जीवन में तो संभव नहीं है "वह अपमानित होकर गई है इसलिए मैं भी उसे वापिस आने के लिए बाध्य नहीं करूंगा तुम्हें इस जन्म में तो इस बात का प्रायश्चित करना ही पड़ेगा"
       चुकीं तुम मेरे शिष्य रहे हो और तुमने मेरी हर आज्ञा का पालन किया है इसलिए मैं तुम्हें यह आशीर्वाद देता हूं कि अगले जीवन में तुम्हारी भेंट उससे अचानक ही होगी और हर क्षण वह तुम्हारी परेशानी,समस्याओं में साए की तरह तुम्हारे साथ ही खड़ी मिलेगी, जिससे कि तुम्हें जीवन में किसी प्रकार की कोई कठिनाइयां प्राप्त नहीं होगी "किंतु वह तब तक तुम्हें प्राप्त नहीं हो सकती जब तक तुम पुनः मेरे पास आकर सौंदर्या यक्षिणी साधना की सिद्धि नहीं कर लोगे।"

       इस पूर्वजन्म कृत घटना को सुनकर मैं आश्चर्यचकित रह गया और शीघ्र ही गुरुदेव से आशीर्वाद ले मैंने सौंदर्या यक्षिणी साधना को सिद्ध कर अपनी प्रेमिका रूप में उसे प्राप्त कर लिया और अब मैं जब भी उसे याद करता हूं वह मेरे सामने साकार हो जाती है। इस साधना को किस प्रकार से मैंने संपन्न किया उसका वर्णन प्रस्तुत है---

                           -:साधना विधि:-
इस साधना को किसी भी शुक्रवार के दिन पूर्ण श्रद्धा के साथ कोई भी स्त्री पुरुष संपन्न कर सकता है
1. सौंदर्या यंत्र
2. यक्षिणी वश्य माला
         साधकों को चाहिए कि वह अत्यंत ही सुंदर और नए वस्त्र पहनकर साथ ही  गुरु चादर ओढ़ कर पूजा स्थल में बैठ जाए साधना किसी एकांत कमरे में ही करें इसमें उसके अलावा अन्य कोई प्रवेश ना कर सके।
            पूजा स्थल को स्वछता से साफ कर चारों तरफ के खिड़की और दरवाजे बंद करके ही पूर्व दिशा की ओर मुख कर बैठ जाएं तथा कमरे में सुगंधित इत्र, सुगंधित धूप, अगरबत्ती प्रज्वलित कर दें और अपने वस्त्रों पर भी गुलाब का या अन्य सुगंधित इत्र लगा लें जिससे की एक सुंदर वातावरण बन सके जो मन में खुशी उमंग और आनंद पैदा कर सके।
     सर्वप्रथम साधक को चाहिए कि वह पूजा स्थल पर सौंदर्या यंत्र को किसी भी आकर्षक रंग के नए वस्त्र पर स्थापित कर दे साधक को गुलाब के दो पुष्प मालाओं को पहले से ही मांगा कर रख लें जिसमें से एक पुष्पमाला गुरुदेव के चित्र के ऊपर चढ़ा दे और दूसरी उसे यंत्र के सामने रख दे।
            साधक को संयंत्र पर कुमकुम अक्षत आदि चढ़ाएं और उसके सामने एक घी का दीपक प्रज्वलित कर दे सामने खीर का या अन्य किसी भी चीज का भोग आदि लगाएं फिर गुरु का ध्यान कर वह प्रार्थना करें- मुझे इस साधना में सिद्धि प्राप्त हो, और मैं जिस रुप में भी चाहूं उसे प्राप्त कर सकूं, ऐसा मन ही मन प्रार्थना कर फिर साधना आरंभ करें।
    इसके पश्चात वह निम्न मंत्र का "यक्षिणी वश्य माला" से 21 माला जप संपन्न करें, यह माला भी मंत्र सिद्धि एवंं प्राण प्रतिष्ठित होनी चाहिए।
मंत्र............

 ओम प्रिय सौन्दर्य यक्षिण्यै फट्

  मंत्र जप संपन्न कर साधक उस भोग को ग्रहण कर ले और उस यंत्र एवं माला को किसी नदी हुए या तालाब में विसर्जित कर दे। इस साधना को सिद्ध कर साधक अपने भौतिक जीवन की परेशानियों से मुक्ति पा सकता है और सुख संपन्नता एवं वैभव के साथ-साथ आनंददायक जीवन जीने में भी सक्षम हो सकता है। इस साधना को वैसे तो किसी भी माता,बहिन, सखी, प्रेमिका के रूप में सिद्ध किया जा सकता है किंतु प्रेमिका रूप में सिद्ध करने पर साधक को शीघ्र ही सफलता प्राप्त होती है और इस रूप में यह उसके लिए विशेष अनुकूल सिद्ध होती है

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