सिद्धाश्रम


सिद्धाश्रम देवताओं का आश्रम कहा जाता है,कहा गया है "सिद्धाश्रम महत्त् दिव्यं देवानामपि दुर्लभं"अर्थात् सिद्धाश्रम अत्यंत उच्च कोटि का दिव्य आश्रम है जो देवताओं के लिए भी दुर्लभ है, मानव जाति के कल्याण हेतु यह एक ऐसा आध्यात्मिक केंद्र है जो समस्त ब्रह्मांड को अपने आध्यात्मिक ऊर्जा से नियंत्रित किए हुए हैं।
                                   पिछले हजारों वर्षों से कई-कई ग्रंथो में सिद्धाश्रम के बारे में विवरण पढ़ने को मिलता है, परंतु इसमें प्रवेश पाना और अपने जीवन को जरा मरण से मुक्ति दिलाना अहोभाग्य ही कहा जा सकता है, इस मानव देह को प्राप्त कर यदि लाख काम छोड़ कर के भी इस तरफ प्रयत्न करें और केवल सिद्धाश्रम को इस चर्म-चक्षुओ से देख भी ले तब भी ईस जीवन की सार्थकता हो सकती है।
   सिद्धाश्रम एक ऐसा दिव्या तपोभूमि है जहां 2000 वर्ष की आयु प्राप्त सन्यासी साधनारत है। वहां कल्पवृक्ष है जिसके नीचे बैठकर जो भी याचना की जाती है पूरी हो जाती है। वहां सिद्ध योगा झील है जिसमें एक बार स्नान करने से ही व्यक्ति का कायाकल्प हो जाता है।इसे चर्म चक्षुओ से देखा जाना संभव नहीं है, जिसकी कुंडलिनी सहस्त्रार खुला हो वही इसे देख सकता है और निश्चित साधनाएं संपन्न करने पर ही इसमें प्रवेश पाया जा सकता है। यहां पर पहुंचने के लिए गुरु की नितांत अनिवार्यता है। गुरु भी ऐसा जो सिद्धाश्रम आ जा चुका हो। इसके बाद भी सिद्धाश्रम की उच्च सत्ता चाहे तभी वह दोनों जा सकते हैं।वहां अपने योग साधना के माध्यम से ही साधक किसी भी इच्छा की पूर्ति कर सकता है संसार के किसी भी दृश्य को अपनी आंखों से देख सकता है।मृत्यु उसकी वह स्वार्थी होती है वह ऐसा दिन विधान है जहां मानव को पूर्ण शांति और अखंड आनंद की प्राप्ति होती है।
       कोई भी व्यक्ति नैतिक नियम के अनुसार साधना संपन्न कर अत्यधिक सरल और सामान्य रहते हुए पूर्व मुखी जीवन जीने का प्रयत्न करें तो अवश्य ही वह सिद्धाश्रम जा सकता है। इस प्रकार सामान्य जीवन जीने की कोई उपयोगिता ही नहीं है हम जीवन जीने के लिए बाध्य हैं क्योंकि यह सांसे ईश्वर की दी हुई दी जिसे हम ढो रहे है।जीवन की विशेषता तो यह है कि हम अपने प्रयत्नों से जीवन को उधर्वमुखी बनाकर उन आयामों को  छू सकें जिनका वर्णन हजारों वर्षों से होता आया है।
         अगर आप कायर और डरपोक हो तो लहरों के भय से समुद्र के किनारे ही जीवन भर बैठे रह जाओगे ऐसी स्थिति में तुम्हें कुछ गिने चुने घोंघे ही हाथ आ सकते हैं जो कि व्यर्थ है। अगर मोती पाना है तो समुद्र की गहरी खाई में उतरना पड़ेगा क्योंकि जीवन मैं अगर कुछ पाना है तो कुछ खोना भी पड़ेगा और तपस्या के उत्तम कोटी की साधनाएं और ऊर्ध्वमुखी जीवन प्राप्त करना असंभव नहीं है।
           हिमालय के मध्य में मानसरोवर और कैलाश पर्वत के बीच पूर्णता वर्फ से अच्छादित यह आश्रम अपने आप में अत्यंत भव्य और अद्वितीय है। यह एक ऐसा आश्रम है जो पद यात्रियों के द्वारा प्राप्त होना संभव नहीं है, जो साधनात्मक दृष्टि से शुद्ध धरातल पर अव्यवस्थित हो सकता है वहीं इसे पहचान पता है।मानसरोवर के पास से हम आगे बढ़ रहे थे तभी एक स्थल पर गुरुदेव रुक गए और भाव विभोर हो गए संभवतः​ उन्हें अपने जीवन के उन झणों का स्मरण हो आया होगा, जब वे वहीं कहीं साधनारत रहे होंगे।
       वे हिमालय के उस भाग से भलीभांति परिचित थे। वे आगे चल रहे थे और मैं बराबर उनके पीछे गतिशील था।साधनात्मक दृष्टि से मैंने अपने शरीर को इस रुप में बना लिया था जिससे कि मुझे सर्दी गर्मी भूख-प्यास का अनुभव ना हो।
    कुछ समय बाद ही मुझे एक बड़ा सा द्वार दिखाइ दिया जो बर्फ से आच्छादित होते हुए भी एक विशेष विद्युत ऊर्जा से चेतन युक्त था, जिसके बाहर कई सन्यासी सामान्यता विचरण कर रहे थे।जब हम उस द्वार के अंदर घुसे तो ऐसा लगा जैसे द्वार के बाहर तक तो फिर भी सर्दी का अनुभव होता है परंतु अंदर कदम रखते ही ठीक वैसा ही अनुभव हुआ जैसे की हम को एयर कंडीशन कमरे में आ गए हैं जहां ना तो किसी प्रकार की सर्दी का अनुभव हो रहा था और ना ही किसी प्रकार की कोई तीव्र हवा या प्राकृतिक प्रकोप हो ऐसा लग रहा था जैसे सर्वत्र शांति और अखंड ब्रह्मत्व का चिर निवास हो। एकबारगी ही मेरे सारे शरीर में अंत: चेतना और प्राण ऊर्जा प्रवाहमान हो गई जिससे सारा शरीर एक विशेष चेतना से आप्लावित सा हो गया।
      लगभग 1 मील तक चलने पर कोई भी सन्यासी या योगी दृष्टिगोचर नहीं हुए परंतु मैंने अनुभव किया की उस प्रकृति विहीन बर्फीले प्रदेश में जहां घास का एक तिनका भी नहीं रुकता वहां इस द्वार के भीतर आने पर दूर-दूर तक प्रकृति का साम्राज्य दिखाई देता है हरे-भरे नवीन प्रकार के पेड़ ,जो अत्यधिक ऊचेऔर छायादार थे, मैंने वहां पहली बार देखें।रास्ते के दोनो ओर इस प्रकार के पेड़ों के पार दोनों तरफ हजारों तरह के खिले हुए पुष्प उस भूखंड को इंद्र के नंदन कानन की संज्ञा दे रहे थे उन फूलों की मिली जुली गांध के कारण सारा शरीर मन और प्राण प्रफुल्लित हो उठे। एक बारगी ही सारा श्रम जाता रहा। जिधर भी मैं दृष्टि डालता उधर प्रकृति का एक विशिष्ट और अलौकिक दृश्य देखने को मिलता है ऐसा लगता है जैसे यहां प्रकृति ने आनंददायक​ चरणों में अपना हसत हसत श्रृंगार किया हो।
     लगभग 1 मील चलने पर हमें एक या दो  सन्यासी आते जाते दिखाई दिए, गौरवर्ण बलिष्ठ और आर्यों की तरह लंबा चौड़ा शरीर चेहरे पर एक विशेष प्रकार का ओज और कंधों पर लहराती हुई जटाएं उनके व्यक्तित्व को साकार कर रहे थे ।पूज्य गुरुदेव बिना रुके निरंतर गतिशील थे और मैं भी सारी प्रकृति को अपनी आंखों में समेटने की चेष्टा करता हुआ उनके पीछे चल रहा था।
यह आश्रम का मुख्य भाग प्रारंभ हो गया था, बाई तरफ एक विशाल हीर दिखाई दे रही थी जिसे सिद्ध योगा झील कहा जाता है।हम इस झील के बिल्कुल किनारे-किनारे चल रहे थे जहां तक दृष्टि जाती वहां तक नीले रंग का जल ही जल दृष्टिगोचर हो रहा था। झील के किनारे हजारों तरह के विशिष्ट पक्षी और राजहंस विचरण कर रहे थे, मैंने उच्च कोटि के राजहंस पहली यहां देखें। विभिन्न प्रकार के रंग बिरंगी चिड़िया और उन पक्षियों के कलरव से एक अजीब प्रकार का आनंददायक वातावरण बन रहा था जिसे शब्दों में व्यक्त करना संभव नहीं है,कई सन्यासी और सन्यासनीया झील के किनारे किनारे बैठी हुई दिखाई दे रही थी जिनकी आंखों में आनंद का समुद्र लहरा रहा था।हमारी चलने की रफ्तार थोड़ी धीमी पड़ गई थी मन ऐसा हो रहा था कि जैसे मैं यह झील के किनारे ही रुक जाऊं।
   

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