अप्सरा साधनाएं ही क्यों?

हम सौंदर्य की परिभाषा भूल गए हैं सौंदर्य साधना हमारे जीवन में रही ही नहीं, धन के पीछे भागते हुए हम अर्थ लोभी बन गए हैं, जिससे जीवन की अन्य वृतियां लुप्त सी हो गई है।
यह अप्सरा क्या है?
     भारतीय शास्त्रों में सौंदर्य को जीवन का उल्लास और उत्साह माना है,यदि जीवन में सौंदर्य नहीं है तो वह जीवन नीरस और उदास हो जाता है, हम में से अधिकांश व्यक्ति ऐसा ही जीवन जी रहे हैं, हमारे होठों पर मुस्कुराहट खत्म हो गई है, जिसके फलस्वरुप हम प्रयत्न करके भी खिलखिला नहीं सकते और मुक्त रूप से हंस नहीं सकते, मुस्कुरा नहीं सकते, एक प्रकार से हमारा जीवन बंधा हुआ सा बन गया है और एक जगह बंधे हुए पानी में सड़ांध पैदा हो जाती है इसी प्रकार रुका हुआ जीवन निराश और बेजान हो जाता है।
        इसके विपरीत यदि हम अपने शास्त्रों को टटोल कर देखें तो देवताओं ने और हमारे पूर्वज ऋषियों ने प्रमुखता के साथ सुंदर साधना संपन्न की है, सौंदर्य को जीवन में प्रमुख स्थान दिया है, देवताओं की सभा इंद्र सभा में नित्य अप्सराएं नृत्य करती थी।वशिष्ठ आश्रम में अस्थाई रूप से अप्सराओं का निवास था। विश्वामित्र ने अप्सरा साधना के माध्यम से जीवन को पूर्णता प्रदान की थी यही नहीं अपितु सन्यासी शंकराचार्य ने भी अप्सरा साधना संपन्न करने के बाद अपने शिष्यों को संबोधित करते हुए कहा था कि साधना के माध्यम से साधक को यह विश्वास हो जाता है कि उसका अपने मन पर और अपने इंद्रियों पर पूर्णत: नियंत्रण है इसके माध्यम से जीवन की वे प्रमुख वृतियां के जीवन में आनंद और हास्य का निर्माण करती है,वह वृतियां उजागर होती है और मनुष्य दीर्घायु प्राप्त करने में सफल हो जाता है। इस साधना के माध्यम से व्यक्ति के जीवन में अर्थ सुलभ आनंद और तृप्ति की किसी भी प्रकार से कोई न्यूनता नहीं रहती।
       जीवन में नारी शरीर के माध्यम से ही सौंदर्य की परिभाषा अंकित की गई है।यूं तो शास्त्रों में 108 अप्सराओं का विवरण वर्णन मिलता है, और इन सभी की साधनाओं के बारे में विस्तार से वर्णन है। अप्सरा सौंदर्य का सकार जीता जागता प्रमाण है। यदि यह प्रश्न प्रश्न पूछा जाए कि सौंदर्य क्या है तो उसे हम किसी अप्सरा के माध्यम से ही स्पष्ट अंकित कर सकते हैं।अप्सरा का तात्पर्य एक ऐसी देवत्व पूर्ण सौंदर्य युक्त 16 वर्षीय नारी प्रतिमा से है जो मंत्रों के माध्यम से पूर्णता अधीन होकर साधक के दुख में भी सुख की बिजली चमकाने में समान होती है उसे के तनाव के चरणो में आनंद प्रदान करने की सामर्थ्य रखती है जो नित्य सशरीर साधक के साथ दृश्य और अदृश्य रूप में बनी रहती है और प्रियतमा के रूप मैं उसकी प्रत्येक प्रकार की इच्छा पूर्ण करती रहती है।
      प्रिया का तात्पर्य प्रदान करना होता है, जो पानी की इच्छा नहीं रखता जिसमें केवल सामने वाले को सुख और आनंद देने की भावना होती है।और अप्सरा अपने विचारों से,अपने कार्यों से, अपने व्यवहार से और अपनी साहचर्य के माध्यम से साधक वह सब कुछ प्रदान करती है, जो उसकी इच्छा होती है।
     और वह इच्छा साधक के विवेक पर निर्भर है यह आवश्यक नहीं है कि अप्सरा केवल भोग्या के रूप में ही होती है, वरन मधुर वार्तालाप, सही मार्गदर्शन, भविष्य का पथ प्रदर्शन,निरंतर धन प्रदान करने की क्रिया भी अप्सरा के माध्यम से ही संभव है। इसलिए यह अप्सरा साधना साधकों के लिए और वृद्धों के लिए भी समान रूप से उपयोगी है। यही नहीं अपितु स्त्रियों के लिए भी अप्सरा साधना का विशेष महत्व बताया गया है जिससे कि उन्हें एक अभिन्न सखी मिल सके और उसके जीवन में आनंद और उत्साह प्रदान कर सके।
                 कुल मिलाकर अप्सरा सौंदर्य की सरकार प्रतिमा होती है। एक ऐसा सौंदर्य युक्त शरीर, एक ऐसा महकता हुआ, फूलों की डाली की तरह लचकता हुआ कामिनी नारी शरीर, को साधक को सभी दृष्टियों से पूर्णता प्रदान करने में सुख और आनंद देने में समर्थ है। यदि अप्सरा साधना को उचित और जीवन में आवश्यक बताया है तो मेरी राय में यह साधना जीवन का आवश्यक तत्व होना ही चाहिए।
   मैंने अपने जीवन में कई साधन संपन्न की है जब तक हम साधना क्षेत्र उत्तरते नहीं तब तक उसका एहसास भी नहीं होता, और जब हम साधना क्षेत्र में प्रवेश करते हैं, अपने मन को एकाग्र कर साधना क्षेत्र में आगे बढ़ते हैं, तो विविध प्रकार के अनुभव होते रहते हैं। विविध प्रकार के दृश्य और बिम्ब दिखाई देते रहते हैं। और जब हमे साधना में सफलता मिल जाती है तो हमारा जीवन ही बदल जाता है। हम मे आत्मविश्वास आ जाता है, और एक निश्चितता प्राप्त हो जाती है कि हम वर्तमान युग में भी साधना कर सकते हैं और उसमें पूर्ण सफलता प्राप्त कर सकते हैं।
     

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