सिद्धाश्रम-2

रास्ते के दाहिने और मिलो लंबा भाग दिखाई दे रहा था, जो हजारों तरह के फूलों से खिला हुआ प्रतीत हो रहा था। उन फूलों की मिनी मस्त और मधुर सुगंध तन मन को भिगो रही थी, दूर पहाड़ों की घटिया दिखाई दे रहे थे जो बर्फ से पूर्णता: अच्छादित थी। मैंने इस प्रकार के खिले हुए पुष्प पहली बार देखे, हजारों तरह के गुलाबी और विविध पुष्पों को एक साथ में देख रहा था यद्यपि मुझे बद्रीनाथ के रास्ते में फूलों की घाटी देखने का अवसर मिला है, पर वह इस वनश्री का करोड़ोंवा हिस्सा भी नहीं हो सकता है। एक तरफ मिलो लंबी फैली हुई शांत झील जिस पर विशिष्ट राजहंस उन्मुक्त विचरण कर रहे थे कई सन्यासी और सन्यासिनिया अपनी गोदी में राजहंसो को लेकर दुलार रही थी और दूसरी तरफ मिलो फैला हुआ पुष्पों का अखंड साम्राज्य ऐसा दृश्य वास्तव में ही अपने आप में अनिवर्चनीय है हम तो स्वर्ग की कल्पना ही करते हैं पर इसे दृश्य के आगे तो स्वर्ग भी भावना नजर आ रहा था।
     अभी तक किसी झील के किनारे किनारे ही आगे बढ़ रहे थे, कुछ दूर चलने पर दाहिने और फूलों के बीच साधकों की कुटिया दिखाई देने लगी, कई स्थानों पर साधक और सन्यासी ध्यान लगाए दृष्टिगोचर हो रहे थे। कुछ आगे चलने पर बाईं तरफ झील के किनारे किनारे स्फटिक की सिलाईओं पर बैठे हुए ध्यानस्त सन्यासी दिखाई देने लगे, ऐसा लगता था जैसे साक्षात देवता हैं वहां ध्यानस्थ हो शांत,सुरम्य,एकांत वातावरण सामने झील का लहराता हुआ जल किनारे पर भव्य पारदर्शी स्फटिक शिला है और उन पर बैठे हुए सन्यासी...... एक ऐसे वातावरण की सृष्टि कर रहे थे जो अपने आप में दिव्य और अनुपम है।
          इसके अलावा कई सन्यासी इधर-उधर विचरण कर रहे थे, परंतु वहां किसी प्रकार की कोई हड़बड़ी नहीं, किसी प्रकार का कोई उतावलापन नहीं, ऐसा लग रहा था जैसे सब कुछ अदृश्य सत्ता के हाथों नियंत्रित हो।अधिकांश सन्यासी पूज्य गुरुदेव से परिचित प्रतीत हो रहे थे, क्योंकि ज्योंही गुरुदेव को देखते आश्चर्य से एकबारगी थम जाते और फिर अपना कमंडलु एक तरफ रख साष्टांग दंडवत करने लग जाते। झील के किनारे जब हम पहुंचे तो सैकड़ों सन्यासी सन्यासनियां  उन्हें देखकर आश्चर्य के साथ-साथ आत्मविभोर सी हो गई और अत्यंत शालीनता के साथ उन्हें प्रणाम कर स्वयं में ऐसा अनुभव करने लगी कि जैसे उन्होंने आज बहुत कुछ प्राप्त कर लिया हो। एक जगह स्फटिक शिला पर विश्राम के लिए कुछ झणों के लिए बैठे तो कई सन्यासी तट से उठकर स्फटिक शिला के चारों ओर शांत भाव से आकर बैठ गए सामने विस्तृत झील और स्फटिक शिला पर परम पूज्य गुरुदेव के चारों ओर उच्च कोटि के सन्यासी मात्र दर्शन कर अपने जीवन को पूर्णता देने का प्रयास कर रहे थे मैंने सहज बालपन वस एक हंस को अपनी गोदी में उठा लिया। वहां सभी पक्षी निर्भय निर्मुक्त है, उन्हें एहसास है, कि वे सुरक्षित है राजहंस का सुखद स्पर्श मेरे प्राणों को छू गया।
कुछ समय बाद गुरुदेव वहां से उठ कर खड़े हुए और मुझे संकेत कर आगे बढ़ गए, ज्यों-ज्यों हम आगे बढ़ रहे थे तेव तेव काफी सन्यासी दिखाई दे रहे थे, आश्रम की कुटिया सादगीपूर्ण और दिव्या आभा से ओत-प्रोत थी, सभी कुटियाए सहज स्वाभाविक प्रकृति निर्मित थी, जिनके बाहर तपस्वी ध्यानस्थ थे,और अपने जीवन की उन परमसत्ता से जुड़े हुए थे, जहां न किसी प्रकार का भय है, न चिंतन है, न किसी प्रकार का कष्ट है, न व्याधि है, न तनाव है, न परेशानी है। सभी के चेहरे तेज युक्त दिव्या आभा से ओत-प्रोत एक विशेष प्रकाश से युक्त दिखाई दे रहे थे जिसका दर्शन हो पाना अपने आप में गौरव युक्त था।
                       मेरे लिए यह शब्द अद्भुत, अलौकिक और आश्चर्यजनक था, मैं तो ऐसा अनुभव कर रहा था कि जैसे मैं मृत्यु लोक का सामान्य मानव स्वर्ग लोक में पहुंच गया हूं। सारा आश्रम इस प्रकार से व्यवस्थित और संचालित है कि कहीं कोई गड़बड़ या उतावलापन दिखाई नहीं दे रहा था
                   थोड़ा सा आगे बढ़ने पर हम बाएं रास्ते पर आगे बढ़ गए यह स्थान विशिष्ट क्षेत्र कहलाता था, जिसमें कुछ विशिष्ट साधनाए करने के बाद ही प्रवेश पाया जा सकता था। मैं अपने गुरुदेव के साथ आगे बढ़ रहा था एक तरफ झील के किनारे काफी वृक्ष सघन कुंज की तरह दिखाई दे रहे थे, जिन पर हजारों हजारों पुष्पा अपनी महक से पूरे वन प्रांतों को सुभाषित कर रहे थे। गुरुदेव ने बताया है यह लघु कल्पवृक्ष है, इसे न्यूनतम प्रयोग करो गाया गया है मूल कल्प वृक्ष आगे है थोड़ा सा ही आगे चलने पर मुझे मूल कल्पवृक्ष दिखाया जो अत्यंत घाना और छायादार था, उसके पत्ते त्रामवर्णि थे,जिसमें से हल्का प्रकाश क्षर रहा था, पूरा पेड़ गुलाबी पुष्पों से आच्छादित था।
               मुझे बताया गया कि वह मूल कल्प वृक्ष है जिसकी प्रशंसा तुम्हारे पुराणों और ग्रंथों में की गई है। कल्पवृक्ष के दाहिनी ओर अत्यंत भव्य स्फटिक शिला पर एक अत्यंत वृद्ध तेजस्वी ऋषि ध्यानास्थ थे। उनके चांदी के समान बाल चारों तरफ बिखर गए थे, उनके चेहरे पर एक विचित्र प्रकार की आभा और प्रकाश झर रहा था, जिसे देखते ही मन में उनके प्रति नमन होने की इच्छा हो रही थी। मैंने उन्हें प्रणाम किया गुरुदेव ने कहा कि ये भारद्वाज ऋषि हैं जिस गोत्र के तुम हो ।कई वर्षों से यह समाधि में है, अपने जीवन में पहली बार अपने गोत्र के आदी महामानव को देख कर मेरा हृदय गदगद हो गया। गुरुदेव आगे बढ़ चुके थे मैं भी पीछे पीछे आगे बढ़ गया।
             अब हम झील के उस भाग के निकट पहुंच चुके थे जो हजारों हजारों पुष्पों से अच्छादित था। इस प्रकार के बड़े बड़े पुष्प मैंने अपने जीवन में पहली बार देखे थे। ब्रह्मकमल का वहां बहुतायत थी। झील के किनारे स्थान पर बहुत लंबा-चौड़ा उधान सा बना हुआ था जीनेमें श्याम वर्णनीय हिरण निर्द्वंद निश्चिंत होकर घूम रहे थे यहां कई साधिकाएं उन्मुक्त भाव से बैठी हुई थी या परस्पर विनोद भाव से एक दूसरे के पीछे दौड़ते हुए दिखाई दे रही थी। वहां पर झील में कई नौकाय देखी, जो संभवतः स्फटिक शिलाओ से बनी हुई होंगी ,क्योंकि फाइबरग्लास की तरह यह नौकाय हल्की और सुंदर दिखाई दे रही थी। इन नौकाओं में सन्यासी और सन्यासनिया अपने ही हाथों से चप्पू लेकर झील में विचरण कर रहे थे। सारा दृश्य ऐसा लग रहा जैसे कि वही पर हमेशा हमेशा के लिए ठहर जाऊ। गौरवर्ण सुंदर और स्वस्थ आकर्षक सन्यासिनी भगवे वस्त्र लंबी जटाएं पैरों में खड़ाऊ और हाथों में मृग सावक, कुल मिलाकर कण्व के आश्रम की याद दिला रहे थे जहां शकुंतला इसी प्रकार से विचरण कर रही होंगी।
         थोड़ा सा आगे बढ़ाने पर हम दाहिनी ओर मुड़ गए बाई ओर एक स्थान पर देव आश्रम लिखा हुआ था संभवताः इस तरह देवताओं व देव कन्याओं का निवास होगा, दाहिनी ओर मुड़ने पर आगे कई सन्यासी ध्यानस्थ बैठे हुए थे। एक स्थान पर गुरु देव ने रुक कर स्वयं उन सन्यासियों को प्रणाम किया जो ध्यानस्थ थे, मेरे पूछने पर उन्होंने बताया कि यह महाभारत में वर्णित युधिष्ठिर, कृपाचार्य और भीष्म पितामह है।

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