हिमालय के योगी


स्वामी व्यंकटेशानंद हिमालय के उच्च कोटि के योगियों में गिने जाते हैं अपने जीवन में स्वामी जी जज रहे हैं परंतु यौवन काल में ही उनका मन ग्रस्त से ऊब गया तो वह सब कुछ छोड़ कर सन्यास स्वीकार कर लिया और इसके बाद इनका अधिकांश जीवन हिमालय में ही बीता।
      साधनाओं के क्षेत्र में यह अद्वितीय हैं और मेरे गुरु भाई हैं इनके साथ में लगभग 3 वर्षों तक रहा और इन 3 वर्षों में मैंने अनुभव किया कि गुरु के प्रति इनकी निष्ठा और भक्ति अनन्य रही है अपने पद और विद्वता का घमंड इन्हें कभी भी नहीं रहा स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के चरणों में रहते हुए शिष्यत्व का जो उच्च आदर्श और मापदंड इन्होंने स्थापित किया वह अपने आप में अनन्यतम रहा है।
          चर्चा के दौरान अपने अनुभव बताते हुए स्वामी जी की आंखें डबडबा आई, बोले- मुझे वह गुरु पूर्णिमा याद है जब हम दो ढाई हजार शिष्य मिलकर गुरुपूजन में लीन थे सामने गुरुदेव बैठे हुए थे और हम बारी-बारी से उनकी अभ्यर्थना करते चरण स्पर्श करते और मनोवांछित वरदान प्राप्त कर अपने स्थान पर लौट आते।
                        उस दिन स्वामीजी "मूड" में थे बोले- आज इस विशेष अवसर पर आपको सिद्धाश्रम साधना संपन्न करवाएंगे, जो कि हमारे जीवन की महत्वपूर्ण साधना कही जाती है।
      उस रात्रि कि उन्होंने सिद्धाश्रम साधना जिस स्नेह के साथ संपन्न कराई वह अनिवर्चनीय है, साधना तो एक बहाना है, यदि वे चाहे और उनके मन में जच जाए तो कठिन से कठिन साधनाएं भी भी 5:10 मिनट में ही सिद्ध करा देते हैं, इस प्रकार की सिद्धि में उनकी स्वयं की साधना और तपस्या का भी योगदान रहता है, रात्रि को उनके परिजनों से हमने जो सिद्धाश्रम संगीत सुनना वह अपने आप में अद्वितीय था आज भी वह सभी शिष्य उस रात्रि को भूले नहीं होंगे, जब उन्होंने सारी रात उस दिव्य रमणीक संगीत का आनंद लिया था।
          मैंने इस बात का अनुभव किया है कि उन्हें सैकड़ो हजार साधनाएं सिद्ध है परंतु अपने आप मेरे इतने निष्प् से रहते हैं कि बाहर से कुछ पता ही नहीं चलता,वे अपने शिष्यों की कई दृष्टियों से परीक्षा लेते हैं और पूर्ण आश्वस्त होने पर ही अपने पास की सारी सिद्धियां उसे प्रदान कर देते हैं।
     चर्चा के दौरान स्वामी व्यंकटेशानंद ने बताया कि गुरु कृपा से ही मैं उसके बाद सिद्धाश्रम में प्रवेश पा सका और आज मैं जो कुछ भी हूं तथा सिद्धाश्रम में जो राजस्थान मुझे प्राप्त हुआ है वह गुरु कृपा के द्वारा ही संभव हो सका है।
           वास्तव में ही स्वामीजी अद्वितीय साधक और सिद्ध बन सके हैं पुरुष भी उनके हाथ से गुरु स्मरण होते ही प्रेम का वेग उमड़ पड़ता है तथा सारा शरीर रोमांचित हो उड़ता है।

गगन मंडल घर मेरा:-

 स्वामी माधवानंद जी गंगोत्री के आगे गोमुख पर रहने वाले श्रेष्ठ योगी है  इन्हें हिमालय में साधक उड़न बाबा के नाम से जानते हैं,क्योंकि इन्हें वाववीय सिद्धि प्राप्त है,जिसके माध्यम से वे एक स्थान से दूसरे स्थान पर मन के वेग से स्वास्थ्य शरीर आ जा सकते हैं।
    गुरु चर्चा के दौरान उन्हें अपने गुरु स्वामी प्रणावानंद जी का स्मरण हो आया, मेरे पूछने पर कि आपके गुरु की अभी कितनी आयु है तो वह मुस्कुराए और फिर सारे अमित शब्दों में बताया योगियों की आयु वर्ष माह दिन से नहीं आंखें जा सकती, सामान्य शारीरिक दृष्टि से इनकी आयु 50 वर्ष हो सकती है पर
आध्यात्मिक दृष्टि से उस व्यक्ति की आयु 300 वर्ष भी हो सकती है क्योंकि साधनात्मक दृष्टि से आयु की गणना उनके जन्म से नहीं की जाती,अपितु अपने पिछले जीवन के आध्यात्मिक वर्षों को भी उनकी आयु का भाग माना जाता है इसी प्रकार योगी गृहस्थ में पूर्ण गृहस्थी में रहते हुए भी योगी जीवन जी सकता है,क्योंकि ऐसे व्यक्तियों की बाहरी देह ग्रहस्थ जीवन से संबंधित होती है पर सूक्ष्म शरीर से हिमालय में साधनारत रह सकते हैं सामान्य अलौकिक व्यक्ति यही अनुभव करेंगे कि यह व्यक्ति जीवन भर ग्रस्त मे हीं रहा था फिर इसने हिमालय में या किसी अन्य स्थान पर साधना कब की होगी?
    पर यही पर वे भूल कर बैठते हैं क्योंकि वे लौकिक भाषा में ही शरीर को समझते हैं एक उच्च कोटि का योगी 40 वर्षों तक जन्म से लगाकर अब तक की गृहस्थ में ही रहा हो परंतु इसके साथ ही साथ वह सूक्ष्म शरीर से हिमालय में साधनारत भी रह सकता है, और 25 वर्ष तक वह सूक्ष्म शरीर से तपस्वी की तरह योगी और सन्यासी की तरह साधन संपन्न कर सकता है।
   ऐसी स्थिति में आप ग्रहस्थ पड़ोसी या संसारिक व्यक्ति तो अपनी अल्पबुद्धि से यही समझेंगे कि वह व्यक्ति जो जीवन भर ग्रहस्थ के कार्यों में लिप्त रहा है और यही अर्थों में गृहस्थ रहा है फिर इसने तपस्वियों सन्यासी बनकर साधना कब की होगी पर उनके अलौकिक ज्ञान की निम्नता है उच्च कोटि की गरिमापूर्ण गृहस्थ संसारिक भोगो में रहते हुए भी सूक्ष्म शरीर से हिमालय में साधना संपन्न कर लेता है इस प्रकार 25 वर्ष तक या 30 वर्ष तक गई साधना उसकी संयासी साधना ही कही जा सकती है।
    स्वामी जी स्वयं गोमुख पर पूर्ण ग्रहण स्वरुप में रहे हैं और जन्म से लगाकर आज तक ग्रहस्थ रूप में रहते हुए भी सूक्ष्म शरीर से 80 वर्षों तक सन्यासी जीवन में साधना लीन हुए हैं ,अलौकिक आर्थो में उनकी आयु 50 वर्ष की हो सकती है और 50 वर्षों में 1 दिन भी उन्होंने भगवे वस्त्र धारण नहीं किए हैं फिर भी उनकी आयु 300 वर्ष की है और 80 वर्ष पूर्णताः सन्यासी जीवन जीते हुए साधनारत हैं।
   उनका यह कथन प्रमाणिक है और उनके इस तथ्य के पीछे हमारे ऋषियों का सुधीथर्त चिंतन है प्रत्येक गुरु पूर्णिमा को वे अपने गुरु के चरणों में बैठते हैं उस समय उन्हें देखकर विश्वास नहीं होता कि इनके पास कुछ सिद्धिया कभी रहे भी होंगी।
 
गुरु चरण में डेरा:- 
     
  आदि बद्रीनाथ के आगे दिव्य आश्रम के संस्थापक स्वामी गिरीशानंद अपने आप में उच्च कोटि के योगी और विद्वान हैं, उन्होंने सिद्धि योग के क्षेत्र में कुछ नवीन प्रयोग किए हैं और आज भी हिमालय के श्रेष्ठ योगियों में गिने जाते हैं।
    वह मेरे गुरु भाई रहे हैं और सिद्धाश्रम में हम दोनों ने साथ ही साथ प्रवेश लिया था।
          गुरु पूर्णिमा और गुरु चर्चा चलने पर उन्होंने भाव विभोर होकर कहा- "मेरा जीवन तो गुरु चरणों" में ही लीन है वह चाहे सन्यासी रूप में रहे या गृहस्थ रूप में ,वह चाहे सूक्ष्म शरीर से हमारे साथ हो या सामान्य देह से दूर हो इससे मेरे चिंतन में कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि मैं प्रती क्षण दिव्य दृष्टि के द्वारा उन्हें देखता रहता हूं और इस प्रकार अपनी आंखें तृप्त बनाए रखता हूं।
  यूं तो गुरु की महिमा गुरु ही जाने यदि हम हैं उनके ज्ञान उनके चिंतन उनके रहस्य को जान ले तो तो फिर हम शिष्य ही क्यों रहेंगे? हम स्वयं ही गुरु बन जाएंगे परंतु मैं उनके गृहस्थ जीवन और गृहस्थ शिष्य को देखता हूं तो आश्चर्यचकित रह जाता हूं कि यह कैसा गृहस्थी शिष्य है जो होठों से गुरु शब्द का उच्चारण करते हैं पर हृदय में किसी प्रकार का कोई समर्पण भाव पूर्णता के साथ नहीं होता। प्रारंभ में उनके प्रांगण में आकाश-पाताल एक कर लेते हैं पर स्वार्थ मिटाने पर भी मुंह मोड़ कर खड़े हो जाते हैं।
               SSC शिव और ऐसे वातावरण के बीच भी यह जिस प्रकार से अधिक हैं और जिस प्रकार से तिल तिल कर अपने आप को जला रहे हैं यह आश्चर्य की बात है यह तो उसी व्यक्ति का धर्म है कि वह इतने विरोधी वातावरण के बीच भी मुस्कुराता रहता है, हम यहां से देख-देखकर विचलित होते हैं, मैं ही नहीं सभी गुरु भाई तड़प उठते हैं परंतु उनकी आज्ञा से बंधे हुए हैं और विवश है।
     और ये गृहस्थ शिष्य उस महान व्यक्ति से बहुत छोटी छोटी चीजें मांगते हैं, कोई रोग मुक्ति की याचना करता है तो कोई पारस्परिक पति-पत्नी के झगड़ो में समाधान चाहता है, कोई व्यापार में उन्नति चाहता है तो कोई आर्थिक सुरक्षा प्राप्त करना चाहता है गंगा के किनारे जाकर भी यह ग्रहस्थ लोग चुल्लू भर पानी पीकर ही तृप्त हो जाते हैं मेरे लिए तो यही आश्चर्य की बात है।
              गुरु पूर्णिमा की चर्चा चलने पर उन्हें सिद्धाश्रम कि वह गुरु पूर्णिमा याद हो आई, जब सिद्ध योगा झील के किनारे स्वामी जी गुरु वंदना की थी, वह सिद्धाश्रम की गुरु पूर्णिमा तो अत्यंत सौभाग्यशाली साधकों को ही देखने को मिलती है,- ऐसा कहते कहते स्वामी जी की आंखें डबडबा आई और वह कहीं किसी और ख्यालों में डूब गए।
                योगीराज अरविंद......
                         योगीराज अरविंद पूर्णता ग्रहस्थ हैं और मेरे गुरु भाई हैं देह से उनकी आयु लगभग 40 वर्ष है परंतु योगिक दृष्टि से उनकी आयु 115 वर्ष से भी कुछ ज्यादा है जन्म से लगकर अभी तक वह या तो अपने शहर में ही रहे हैं या गुरु चरणों में समय बिताया है परंतु सुक्ष्म शरीर से लगभग 20 वर्ष उन्होंने हिमालय में साधना की है कई लोग उनकी आलोचना करते हैं कि स्वामी अरविंद योगी कैसे हो सकते हैं, जबकि उन्होंने हिमालय का मुंह ही नहीं देखा हमने तो उन्हें अब तक इसी शहर में देखा है, उनकी पत्नी है, पुत्र-पुत्रियां हैं ग्रहस्थ में डूबे हुए हैं पर ऐसा कहने वाले सामान्य व्यक्ति है जो कि यौगिक शब्दों ,भाव और आर्थो को नहीं समझते।
    इस संबंध में चर्चा चलने पर उन्होंने कहा मैं स्वयं इस प्रकार की तुक्ष्य आलोचनाओं से विचलित अवश्य होता हूं परंतु ऐसे लोगों को समझाना और अस्वस्त कराना अत्यधिक कठिन होता है ,जिनके मन में संदेह भ्रम और कुतर्क होता है वह कुतर्क पर ही डटे रहते हैं, इसलिए ऐसी स्थिति में सर्वथा शांत और चुप रहना ही ज्यादा श्रेष्ठकर होता है। मैंने कभी भी इस प्रकार की आलोचनाओं का जवाब नहीं दिया यद्यपि मेरे ऊपर पत्र पत्रिकाओं में हल्के स्तर से कई प्रकार के आरोप लगाए गए, पर मैं सर्वदा शांत हूं क्योंकि इस प्रकार के कुतर्कों का जवाब देने से एक और कुतर्क बड़ेगा और मानसिक टेंशन में वृद्धि ही होगी।
वास्तव में ही स्वामी अरविंद एक अद्वितीय साधक हैं और शीघ्र ही सीधा आश्रम में प्रवेश करने वाले हैं उन्होंने उस स्तर को प्राप्त कर लिया है जिसे श्रेष्ठ अस्तर कहा जाता है गुरु पूर्णिमा की चर्चा चलने पर उन्होंने कहा मैं प्रत्येक गुरु पूर्णिमा के अवसर पर गुरु के चरणों में रहता हूं और यह दिन मेरे लिए स्मरणीय और ऐतिहासिक बन जाता है।

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