प्रिय वल्लभा किन्नरी


किन्नर यानी कि मनुष्य और देवताओं के मध्य की कड़ी,वरदायक शक्ति संयुक्त अद्भुत सम्मोहन कारी प्रभाव से सिद्ध साधक को पूर्णता देने में सक्षम।
          अप्सराओं से अधिक मादक, प्रवीण और धन्य धान्य से परिपूर्ण कर देने की कला जानने वाली विशिष्ट देवी..........
      जिस तरह से इस संसार में आमोद-प्रमोद मनोरंजन के कई उपाय हैं ठीक उसी तरह से साधना जगत भी अपने में कोई आयाम समेटे हैं, जो सही अर्थ में साधक होते हैं उनके जीवन में विविध पक्ष होते हैं वास्तविक साधक जीवन का केवल एक ही पक्ष, साधना करना ही नहीं रह जाता वह तो जीवन के सभी पक्षों को जीता है, प्रत्येक आयामो को समझता है -जैसे कोई बलशाली और सुदृढ़ युवक किसी ऊंची पर्वत की चोटी पर कभी इस मार्ग से चढ़ाने का हौसला और दमखम रखें, तो कभी उस मार्ग से। उस में हठ समाई हो कि वह प्रत्येक मार्ग का सौंदर्य निहारेगा ही, उसने कूट-कूटकर आग्रह भरा हो कि वह जीवन का संपूर्ण सौंदर्य जी ही लेगा। यह सच है की तलहटी के सभी रास्ते पर्वत की चोटी तक जा रहे हैं लेकिन हम क्यों ना हर मार्ग का आनंद लें, फिर भले ही उबड़ खाबड़ मार्ग मिले या घने जंगलों में से होकर गुजरा या सुरम्य फूलों भरा मार्ग मिला। हिंसक पशुओं वाला मार्ग मिला तभी तो जीवन का रोमांच ही होगा।
        यह होती है साधक की भाव भूमि और ऐसे ही भाव से भरे साधक जीवन में उतार सकते हैं कोई भी साधना। सौंदर्य साधनाएं तो ऐसे ही साधकों के आसपास खेलती सी रहती है। अप्सरा साधना,यक्षिणी साधना,किन्नरी साधना ऐसे ही साधकों के लिए गढी गई है, क्योंकि ऐसे साधक इस भावभूमि से भली भांति परिचित होते हैं, जिस पर रहकर ऐसी साधनाओं को सिद्ध किया जा सकता है,और किसी अप्सरा या किन्नरी के प्रकट होने पर कैसा व्यवहार किया जाता है, कैसे उसे जीवन में उतार लिया जाता है, और उसका उपयोग किया जाता है।
            किन्नरी साधना को लेकर मैं भी प्रारंभ में सामान्य साधक की तरह शंकालु और कुछ हद तक भयग्रस्त भी था,क्योंकि प्रचलित धारणाओं से किन्नरी को लेकर मन में छवि ही ऐसी बन गई थी, फिर भी मैं कौतूहलवश साधना में बैठ गया मेरा कोतूहल था कि मैं अप्सरा वर्ग के अनुभव को तो परख चुका हूं अब आजमा कर देखू की किन्नरी वर्ग में क्या विशेषताएं हैं,और अप्सरा की अपेक्षा किन्नरी में क्या अलग गुण होते हैं, क्यों वह अवसरों वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ कहीं गई है
               प्रारंभ मे मुझे असफलताएं मिली और कोई भी अनुभूति नहीं मिली ।मैंने पूज्य गुरुदेव से फोन करके इस विषय में कारण जानना चाहा, जिससे प्रत्युत्तर में उन्होंने खिन्न  न होने की आवश्यकता पर विशेष बल दिया तथा भविष्य में सफलता प्राप्ति का आशीर्वाद भी प्रदान किया। उन्होंने यह भी कहा कि इस प्रकार की साधना में प्रारंभ में ही तुम जिस प्रकार की सफलताओं की आशा रखते हो वह कठिन होती है, किंतु असंभव नहीं। मेरा मन कुछ टूट सा गया था। उसी बीच मेरा स्थानांतरण भी हो गया तथा मैं स्थानांतरित होकर नागपुर चला गया मैं अपनी नौकरी और दैनिक जीवन चार्या में तथा नये स्थान से तालमेल बैठाने में फिर ऐसा व्यस्त हो गया कि किन्नरी साधना को भूल केवल दैनिक पूजा तक ही सीमित रह गया।
      मेरा नागपुर पहुंचने के कुछ दिनों बाद की घटना है कि मेरे कार्यालय में एक विशेष पद जो योग्य पात्र न मिलने के कारण कई माह से खाली पड़ा था, उस पर नियुक्त होकर एक प्रयः 27-28 वर्ष की आयु की युवति आई।उसकी आयु एवं पद के लिए वांछित योग्यता को देखते हुए हम सभी आश्चर्यचकित थे, कि कैसे उसने इतनी कम उम्र मे हीं ऐसी योग्यता प्राप्त कर ली है।सुदूर दक्षिण प्रांत से आए उस युवती का नाम अनुपमा था ,जो अपने नाम के अनुरूप ही वास्तव में अनुपम ही थी। वह अकेली ही कार्य करने के लिए वहां आई थी उससे उसके परिवार आदि के विषय में किसी ने कुछ विशेष नहीं पूछा।
     अनुपमा दक्षिण भारतीय होने के बाद भी गोरेपन की ओर बढ़ता हुआ गेहुआ रंग लिए थी, जो कि उसके स्वस्थ व ताजगी से भरे बदन से आती झिलमिलाहट में घुल मिलकर सुनहरी सी आभा देता था। हल्का भरा बदन,सामान्य से कुछ अधिक ऊंचाई और खुली हुई शरीर संरचना में उसके बदन का भरवा खिलकर निखर उठा था। प्रकृति रूप से उसके लंबे व घने बाल थे, जो कि किसी भी दक्षिण भारतीय युवती को प्रकृति प्रदत्त सौंदर्य होता है, उस पर भी रोज करीने से लगी सफेद फूलों की वेणी जिसकी ताज़गी से उसका चेहरा भी वैसा ही स्वच्छ और धुला धुला सा लगता था।जब उनको वह कभी जुड़े की शक्ल में बांध देती थी और तब कहना कठिन होता था कि वह किस रूप में अधिक मोहक लगती है। गालों पर कुदरती लाली, बड़ी-बड़ी और गहरी काली आंखें जिसमें अभिमान भरा था।आकर्षण ठोड़ी और गहराई भरे रसीले होठ, जिन्हें वह कभी सजा देती थी अपने मन की तरह कोमल, हलके गुलाबी रंग, जामुनी रंग से।छोटे कानों की गोलिईयों को उसने कुछ और सवार दिए था मोतियों के बूंदों से जो, उसके चेहरे पर छाई मोतियों कि सी आभा से ही घुल मिल जाते थे।वह आभा जो किसी व्यक्ति के चेहरे पर अभिमान की आभा कही जा सकती है।
         गले में पतला सा मंगलसूत्र जिन्हें वह रह रह कर अपनी पत्नी अंगुलियों में घुमाती रहती थी।स्वस्थ भरी भरी कलाइयों में एक एक सोने की पतली चूड़ी, जो उसकी गोरी बाहों में सुडलता पर रह रह कर यू कौध सी फेकती मानो कहीं से सुनहरी धूप की कोई किरण आकर किसी अंधेरे कमरे में कौध जाए। बात करते समय उसके हाथ कभी-कभी बालों को हल्के से सवारते थे तो,कभी गले में पड़ी चेन को घुमाने से उसकी गोरी उठी बाहें यूं लगती थी कि अपनी थिरकन से वह बाहों में निमंत्रण का कोई संगीत छेड़ दिया हो।पतली पतली कोमल अंगुलियों में सादगी से पड़ी थी केवल एक मोती की अंगूठी। कानों की ही तरह बाहों के दूधियापन में खो गया एक और कीमती रत्न!जिसकी गुलाबी और उजली आभा उसकी अंगुलियों में घुल मिल गई थी।
                 मै उसे देखता तो सोचता कि यह तो खुद जो मोती जैसी है भला क्यों मोती धारण करती है, यह तो उसके बदन पर यूं ही बिखरे बिखरे हैं, लेकिन मोती ही उसका सही रत्न था। वह भी तो मोती की तरह है आभा और सुडौलता अपने अंगों उपांगों में संजोए थी। दो मोती ही तो उसके वक्ष स्थल पर ढले हुए थे -कुंचमंडल बनकर।उसकी स्वाभिमानी चाल से वह दोनों विशाल मोति यों थिरक उठते थे, जो किसी रूपसी के गले में पड़ी माला के मनके।उसकी मांंसल कमर जो पतली ना होने पर भी मादकता से भरी हुई जिसमें पड़े बल नाभि के पास लहरा कर आते हुए योंं गोते लगाते जैसे किसी गहरी नदी मे भवर पड़ी हो और वहां सारी लहरें जाकर खो जा रही हो। सारे कटि प्रदेश की मांंसलता,कटाक्ष,दूधियापन सब कुछ उस नाभि की भंवर में,उसकी गहरी भंवर में खोता सा दिखता था और उसका नितंब प्रदेश तो अपनी गढ़न को लिए छुपे छुपे ढंग से सभी पुरुषों के माध्यम चर्चा का केंद्र था।कितने भी ढ़ीली साड़ी वह क्यों न बांधी लेकिन आंतरिक कसाव छिपाए नहीं छिपती थी। दो जंघाओं की गठन झलक जाती थी जब कोई तेज हवा की लहर आकर उसके बदन को छू कर निकलते और सारे वस्त्र को शरीर से चिपका दे, ज्यो किसी मासूम बच्चे ने चुगली सी कर दी हो.......

इंद्राप्सरा साधना


आज के युग में आप मानो या ना मानो पर हम आप को मानने के लिए बाध्य कर देंगे कि,आप इस प्रयोग को करें,मंत्र जपे,कानों में घुंघरूओ की खनखनाहट सुने, आंखों से नृत्य देखे और परिवार को अपनी समृद्धि धन और श्रेष्ठ​ता दिखाकर आश्चर्यचकित करें!  
                          वास्तव,में आज के युग में मानना, की अप्सरा का नृत्य देखा है या देखा जा सकता है, कानो से घुंघरू की झंकार आहट सुनी है....... असंभव ही लगता है। मैं भी यही समझता था, कि यह कैसे संभव हो सकता है कि मंत्र जपे और आंखों से नृत्य देखे या कानों से घुंघरू की खनखनाहट सुनें........ पर जब मैंने साक्षात्कार किया तो मुझे भी बाध्य होना पड़ा, यह मानने के लिए कि असंभव जैसा कुछ भी नहीं है। मैं एक साधारण परिवार से संबंधित था  चूकि मेरी दोस्ती गांव के जमीदार के पुत्र से दिया थी,अतः मैं उसके साथ ही पूरे दिन मौज मस्ती करता रहता था, उसे घुड़सवारी का शौक था, उसके साथ मैं भी घुड़सवारी सीख लिया था। हम दोनों भिन्न-भिन्न परिवार से होते हुए भी एक ही परिवार से संबंधित लगते थे। जमीदार का स्नेह भी मुझ पर अत्यधिक था।
   परंतु पिताजी को किन्हीं कारणों से उसके गांव से निकलकर एक बड़े शहर में जाना पड़ा। वहां जाकर पिता जी ने व्यापार शुरू किया और वहां पर उनका व्यापार अच्छा चल पड़ा। वहां पर मैं भी आगे पढ़ने के लिए स्कूल जाने लगा। धीरे-धीरे मैं गांव के वातावरण को भूल पढ़ाई में व्यस्त होता चला गया।
        तकरीबन 2 वर्ष बाद मुझे अपने दोस्त का पत्र मिला पत्र इतना आत्मीयतापूर्ण था, कि चाह कर भी  वहां जाना स्थगित न कर पाया और पुनः अपने दोस्त से मिले 2 वर्ष बाद उसी गांव में पहुंचा।वहां पहुंचा तो देखा कि अब वह एक अजीब सी भेष भूषा में रहने लगा है, मैं तो उसे देखकर संसय में पड़ गया कि इसे क्या हो गया है। गांव भी इन 2 वर्षों में काफी बदला हुआ लग रहा था।जमीदार साहब भी बाहर से प्रसन्न तो दिख रहे थे, पर साथ ही साथ कुछ परेशान भी लग रहे थे। उन्हें परेशान देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं पूछ ही बैठा क्या बात है जमीदार साहब आप परेशान से लग रहे हैं, अगर मैं आपकी परेशानी हल कर सकूं तो मुझे प्रसन्नता होगी।
       चुकी मेरे और उनके पुत्र के मध्य के घनिष्ठ संबंध को वे जानते थे, और मुझे भी भी अपने पुत्र जैसा स्नेह देते थे, इसी आत्मीय संबंधों के कारण वह मुझसे खुलकर अपने मन की बात कहने लगे जिसके कारण भी चिंतित थे। उन्होंने कहा- "तुम्हारे जाने के बाद 2 वर्षों में अनेक घटनाएं घटी है उन घटनाओं के कड़ियों को जोड़ता है तो परेशान हो जाता हूं........"
          उन्होंने उन 2 वर्षों की घटनाओं को संक्षेप में बताना शुरू किया तुम्हारे जाने के बाद छोटे जमीदार साहब अकेले हो गए थे वे दिन दिन भर घर से गायब रहते, पूछने पर कुछ नहीं बताते....... महीने भर तक तो यही क्रम चला,फिर वे रात को भी प्रायः घर नहीं आते। वह कहां जाते हैं यह देखने के लिए कई बार लोगों को उनके पीछे भेजा, तो यही पता चला कि गांव के बाहर जो खंडहर है, वही जाते हैं.......... यह क्रम करीब 6 महीने चला।
           6 महीने बाद तो वहीं जाकर बस गए, अजीब सा पीर फकीर जैसा वे वेशभूषा में।कभी घर बुलाता तो वह साफ मना कर देते थे। मैं स्वयं भी उन्हें लेने कई बार गया परंतु उन्होंने मना कर दिया।
      उनके जाने से मैं बहुत परेशान रहने लगा, तुम्हें तो पता है कि वह मेरे एकमात्र पुत्र हैं, उनकी जाने पर मैं अपने व्यापारिक कार्यों में ध्यान नहीं दे पाया। मुझे लगने लगा कि मैं यह सब किसके लिए कर रहा हूं........ पुत्र है, तो वह अब नहीं के बराबर। उनको जब भी वापस लाने जाता, तो एक ही उत्तर मिलता "पिताजी मुझे आना होगा तो मैं स्वयं ही आ जाऊंगा।"
         पुत्र के वापस आने की कोई उम्मीद नहीं दिख रही थी, मेरी भी अब व्यापारिक कार्यों में रुचि हटती चली गई और धीरे-धीरे कारोबार समाप्त होने को आया और मैंने व्यापार को संभाल ना पाने के कारण उसे समाप्त कर दिया, कि 1 वर्ष बाद अकस्मात में पुनः वापस आ गए........... और जब से आए हैं तब से रोज रात को कहीं जाते हैं और सुबह वापस आते हैं।उनके आने पर उनके ही आग्रह पर पुनः अपना व्यापार शुरू किया और उन्होंने ही व्यापार को संभाला परंतु जब से उन्होंने व्यापार संभाला है तबसे धन की वर्षा होती है और समृद्धि पहले से अधिक हो गई है। इसी कारण मेरे मन में संशय हो रहा है कि इतने अधिक धन वर्षा कैसे हो रही है। मैं तो आश्चर्यचकित हूं कि जो व्यापार समाप्त हो गया था उससे अचानक धन वर्षा कैसे हो रही है?
      इसीलिए मैं परेशान हूं कि कहीं यह धन उनके गलत कार्यों का फल तो नहीं..........इतना कहते-कहते उनकी आंखे नम हो गई,परंतु शीघ्रता से स्वयं को संभालते हुए उन्होंने आगे कहा-" हमारी इस गांव में बहुत इज्जत है। अगर ऐसा कुछ है तो जो हमारे लिए बदनामी की बात है मैं चाहता हूं कि तुम मुझसे बात करो और पता करो कि यह सब क्या घटना घट रही है।मुझे उनके वापस आने से बहुत अधिक खुशी हुई है परंतु इस आश्चर्यजनक परिवर्तन को देखकर हृदय से प्रसन्न नहीं हो पा रहा हूं....... मेरे मन में संशय उत्पन्न हो गया है- इसका निराकरण करो।"
        मैंने उन्हें आश्वासन दिया -"आप चिंता मत कीजिए मैं आपको वास्तविकता वास्तविकता का पता लगा कर बताऊंगा।"
   मैंने उन्हें आश्वासन तो दे दिया परंतु मैं स्वयं में संशयग्रस्त था, कि मैं जमीदार साहब का यह कार्य कर पाऊंगा या नहीं, पता नहीं मेरा मित्र मुझ पर विश्वास करेगा या नहीं। फिर भी मैं भगवान को स्मरण कर वास्तविकता को जानने की प्रबल इच्छा से उससे बात करना ही उचित समझा। मुझे मेरे मित्र का रात को बार बार बाहर जाने के समय का पता चल गया था मैं उसी समय उस के पक्ष में पहुंचा और उसे कहीं जाने की मुद्रा में तैयार देखा,तो उत्सुकता से पूछा-"कहीं जा रहे हो क्या?"
" हां"
-"क्या मुझे भी अपने साथ ले चलोगे?"
 वह रुका और बोला-"आज नहीं मित्र!पर कल तुम्हें अवश्य ले चलूंगा।"
          मैंने उसे कुछ नहीं कहा, जाने दिया वह एक घोड़े पर सवार हो गया रात के घना घोर अंधकार में लुप्त हो गया। मैं देर तक उसके घोड़े की आने वाली टापू की आवाज सुनता रहा और वहां बाहर लान में टहलता रहा।
                                                  करीब 5:00 बजे जब सूर्य की किरणें आकाश में उपस्थित हो पृथ्वी को चूमने लगी, मुझे घोड़े पर आता मेरा मित्र दिखाई दिया।मैंने देखा कि उसके चेहरे पर लावण्य झलक रहा है। उस समय उसकी आंखों की तीव्रता को शायद ही कोई सहन कर पाता। उसका चेहरा बहुत ही सुंदर लग रहा था, कुल मिलाकर वह अत्यंत आकर्षक लग रहा था। मैंने उसका ऐसा रूप पहली बार देखा था और स्तंभित सा देखता ही रह गया।
              वह घोड़े से उतर गया और मेरी ओर हौले से मुस्कुरा कर अपने कक्ष में चला गया।
      उसके आने के बाद मैं भी अपने कक्ष में चला गया और स्नान वगैरह कर आराम करने लगा दिन के 10:00 बजे मुझे मेरे मित्र ने बुलवाया, मैं उससे मिलने पहुंचा, तो उसे देखने पर मुझे उसमें सुबह वाली कोई चीज नहीं दिखी। वह कुछ बोलता, उससे पहले ही मैंने उत्सुकतावश पूछ लिया- यह परिवर्तन कैसा है? यह क्या है? इसका क्या रहस्य है तुम कहां जाते हो?प्रातः जो आकर्षण तुम्हारे चेहरे पर था वह इस समय क्यों नहीं है?
    वाह मेरे इतने सारे प्रश्नों को सुनकर हंसा और बोला-" तुम मेरे अंतरंग मित्र हो, तुम्हें यही सब बताने के लिए ही तो बुलाया हूं इन 2 वर्षों में जो कुछ घटा है वह तुम्हें बताना चाहता हूं।"
       मैं जानता हूं कि तुम कल पिताजी से मिले हो और पिताजी के मन में यह संशय है कि मैं गलत कार्य कर रहा हूं,गलत लोगों के बीच फंसा हू। तुम वास्तविकता जानना चाहते हो और मैं भी एक मित्र के नाते तुम्हें सब बताऊंगा। मैं तुमसे एक प्रार्थना करता हूं कि तुम पिताजी के मन से इस संशय को समाप्त करने में मेरी मदद करो क्योंकि मैं ऐसा कोई कार्य नहीं कर रहा हूं।
                    तुम्हारे जाने के बाद मैं बहुत अकेला रह गया, मैं दिन भर उन्ही स्थानों पर घूमता रहता,जहां हम दोनों एक साथ खेलते हुए घूमते थे। करीब महीने भर बाद मुझे जंगल में एक बाबा मिले। उन्होंने मेरी ओर देखा और उपेक्षित भाव से चल दिए। मैं यह सहन नहीं कर पाया और उनके पीछे पीछे चल दिया,परंतु तेज धूप और सुबह से भूखा प्यासा रहने से बेहोश हो गया।
          जब मुझे होश आया, तो देखा वही बाबा बैठे हैं। मैं स्वयं में कमजोरी अनुभव कर रहा था, अतः पुनः लेट गया बाबा कुछ पूजा कर रहे थे। अचानक वहां सुगंध तैरने लगी मैं आश्चर्य में पड़ गया है कि बाबा ने ना तो धूप जलाई है और ना ही अगरबत्ती और ना ही पुष्प.......तो फिर यह सुगंध कहां से आ रही है?
           अगले दिन जब हमें स्वस्थ हुआ, तो बाबा से पूछा कि यह सुगंध कहां से आ रही थी। बाबा ने कोई उत्तर नहीं दिया बल्कि मुझे हजार रुपए पकड़ाते हुए कहा, कि मैं अपने घर जाने के के लिए किसी गाड़ी का इंतजाम कर लो मैं वहां से निकला थोड़ी ही दूर पर मुझे गाड़ी नहीं मिल गई है और मैं घर आ गया।घर पर आकर मैं सोचता रहा कि वह सुगंध किसकी थी और फकीर के भेष में रहने वाले बाबा के पास हजार रुपए कहां से आये........ मेरा मन संशयग्रस्त हो रहा था।
        मैं अगले दिन पुनः उस स्थान पर पहुंचा जहां पर बाबा जी रहते थे।एक तरह से उनके व्यक्तित्व मुझे आकर्षित कर लिया और मैं रोज रोज वहां जाने लगा।शुरू में तो वह मुझे भगा देते हैं,कुछ ऐसा कराते कि मेरा मन तृष्णा से भर उठता,लेकिन अगले रोज फिर मेरे कदम उधर बढ़ जाते। मेरा रोज रोज वहां जाने से धीरे-धीरे घनिष्ठता स्थापित हो गई। वे मुझे अपने अनुभव बताते, बातों बातों में ही मुझे पता चला कि वह तांत्रिक क्रियाओं के ज्ञाता है और मुस्लिम तंत्र में उन्हें विशेष महारत हासिल है।
           "धीरे धीरे वे मुझे प्रयोग भी सिखाने लगे,मुझे भी इसमें आनंद आने लगा।मैं बाबा के साथ करीब साल भर रहा, उनके साथ रहकर ही मैंने जाना कि तंत्र वास्तव में कितना श्रेष्ठ और कितना विस्तृत है,तथा साथ ही जान सका कि उन हजार रुपए का रहस्य जो उन्होंने मुझे दिया था, जान सका उस सुगंध का रहस्य जो मैंने अनुभव किया था।
                                             उन्होंने मुझे सुलेमानी तंत्र के अनुसार होने वाली साधना इंद्राप्सरा लक्ष्मी साधना जो वर्ष में सिर्फ 1 दिन ही की जाती है बताएं और उन्होंने मुझे वह साधना अपने सामने संपन्न भी कराई। कल रात मैं उसी साधना को पुनः विधि पूर्वक संपन्न करने के लिए गया था। चुकिं मैं तंत्र साधना की ओर प्रवृत्त था और मुझे डर था, कि कहीं पिताजी को यह गलत ना लगे, इसलिए मैं बाहर एक विशेष स्थान पर जाकर साधनाएं करता था। व्यापार में जो अचानक प्रगति हुई है वह उसी साधना का प्रभाव है।"
        उन्होंने मुझे यह भी बतलाया कि उसने साधना को संपन्न कर उससे अप्सरा का नृत्य भी देखा है। मैंने अविश्वास प्रकट करने पर उससे अपनी साधना बल के माध्यम से मुझे उसकी घुंघरू की झंकार भी सुनाई और कहा की नृत्य वही देख पाता है जिसने यह साधन संपन्न की हो, बिना साधन संपन्न के नेत्रों में इतनी क्षमता नहीं आ सकती कि उसे कोई देख सके।
                 उसकी बात सुनकर पहले तो मैं आश्चर्य से भर उठा, परंतु जब उसने मुझे पूरी साधना संपन्न करवाई और मैंने इस बात की सत्यता को प्रत्यक्ष एवं प्रमाणिक रुप से स्वयं देखा और अनुभव किया तो मुझे भी उसके बाद मनाने के लिए बाध्य होना पड़ा वास्तव में यह साधना अद्वितीय है। इस साधना को संपन्न करने के फलस्वरुप मेरे परिवार में भी धन में आश्चर्यजनक वृद्धि हो गई।

सुखी पत्नी बनने के पांच फॉर्मूले


  1. पति पर पूरा-पूरा विश्वास कीजिए भूलकर भी अलग रहने या मतभेद रखने की कल्पना मत कीजिए।
  2. या तो आप अपने पास अपना 'अहम और घमंड' रख सकती हैं या पति का प्यार, दोनों में से एक।
  3. किसी बात के बिगड़ जाने पर या संकट पड़ने पर भी पति पर दोषारोपण मत कीजिए।
  4. प्रत्येक पति सुंदर और आकर्षक पत्नी देखना चाहता है, अतः स्वस्थ सुंदर संयमित और सुसज्जित बनी रहिए।
  5. उदासी चिड़चिड़ापन ताने देना गलतियां निकालना वैवाहिक जीवन के शत्रु हैं, इसकी अपेक्षा हर क्षण मुस्कुराहट के साथ पति से मिलिए यह उपाय लंबे समय तक सुखी बनाए रखने का श्रेष्ठ उपाय है।
Note-अगर आप इन विचारों से सहमत हैं तो अपने सभी विवाहित मित्रों को एक बार शेयर अवश्य करें! क्या पता किसी का जीवन खुशियों से भर उठे।।

सुगंधमोदनी अप्सरा साधना विधि



  1. इसे साधना में आवश्यक सामग्री है- सुगंधमोदनी अप्सरा यंत्र व अप्सरा माला।
  2. यह साधना 3 दिन में संपन्न होती है इसे यदि रात्रि में करे तो ज्यादा उचित रहेगा।
  3. किसी भी शुक्रवार से प्रारंभ कर सकते हैं।
  4. साधक गुलाबी रंग के वस्त्र धारण करें तथा स्वयं सुगंधित इत्र लगाकर बैठे।
  5. लकड़ी के वजोट पर श्वेत वस्त्र पर ताम्र या स्टील के पात्र में अप्सरा यंत्र स्थापित करें।
  6. यंत्र का पूजन करें तथा सुगंधित पुष्प व इत्र चढ़ाएं।
  7. घी का दीपक निरंतर जलता रहे।
अप्सरा माला से नित्य 21 माला मंत्र जप करें।
मंत्र
    ऊं ह्रीं ह्रीं सुगन्धमोदिन्यौ ह्रींह्रीं फट्

  1. जब समाप्त होने पर दूध से बना नए वेद अर्पित करें तथा वह स्वयं ही ग्रहण करें।
साधना पूर्ण होने के अगले दिन यंत्र व माला किसी नदी में प्रवाहित कर दें।
यह अप्सरा साधक को हर क्षण नित्य नूतन रूप में प्रसन्न रखती है तथा उसे अपना साहचर्य प्रदान कर आनंदित करती है, यह अति शीघ्र ही सिद्ध हो जाती है।

रंजिनी अप्सरा साधना विधि


रंजिनी अप्सरा की साधना साधारण अप्सराओं की साधनों की अपेक्षा कुछ परिवर्तन से की जाती है।सुगंधित द्रव्य एवं विविध आभूषणों में तीब्र रुचि रखने वाली स्वामी अप्सरा की साधना सायं के प्रथम पहर में ही की जाती है जिसमें साधक को के लिए आवश्यक है कि वह अपने साधनों स्थलों को भली-भांति सजा सवार कर रखें, यदि संभव हो तो वह कमरे में केवड़े की बला लाकर स्थापित करें, अन्यथा केवड़े के जल का छिड़काव सारे कमरे में कर दें। इस साधना में हल्के हरे रंग का विशेष महत्व है, साधक के लिए वस्त्रो का कोई बंधन नहीं। अपनी रुचि के अनुसार पैंट शर्ट पायजामा कुर्ता कुछ भी पहन सकता है और स्त्रियां जैसे चाहें अपना श्रृंगार कर इस साधना में बैठ सकती है किंतु आसन और सामने लकड़ी के वजोट पर बिछाया जाने वाला वस्त्र हल्का हरा रंग होना आवश्यक है, यदि यह रेशमी हो और उसके चारों कोने पर सुनहरी गोटे लगे हो तो और अधिक अच्छा माना जाता है।
                             चंदन अथवा केवड़े की सुगंध वाली अगरबत्ती जलाकर वातावरण को शुद्ध करें और रंजनी अप्सरा के आवाहन और प्रत्यक्षीकरण का विशिष्ट उपाय "शुभांगी रंजनी यंत्र" स्थापित कर माला से निम्न मंत्र का 11 माला जप करें। यंत्र पर किसी सुगंधित पुष्प की पंखुड़ियों की वर्षा करें और हिना का इत्र लगाएं दीपक की इस साधना में कोई आवश्यकता नहीं है। जब मंत्र जप के उपरांत अप्सरा प्रगट हो तो उसकी साक्षात उपस्थित होने पर उसे कोई आभूषण भेंट करे, अन्यथा सामने स्थापित यंत्र पर पहले से ला कर रखी कोई सुगंधित पुष्प माला चढ़ावे।
        अप्सरा साधना व्यक्ति को सिद्ध तो प्रथम बार में ही हो जाती है लेकिन वातावरण में व्याप्त किन्ही दूषित प्रभाव के कारण इसका प्रत्यक्षी कारण नहीं हो पाता है, जिसके लिए हताश और निराश होने की कोई आवश्यकता नहीं है। यह साधना 5 दिनों की है जो सप्ताह के किसी भी दिन प्रारंभ की जा सकती है और श्रेष्ठ साधकों का एक मत से कहना है कि वास्तव में यह अप्सरा साधना प्रथम बार में ही सिद्ध हो जाती है।
मंत्र
ॐ ऐं रंजिनी मम प्रियाय वश्य आज्ञा पालय फट्

अष्ट नागिनी साधना विधि


इस साधना को संपन्न करने के लिए साधक सर्व प्रथम पूज्य गुरुदेव से अनुमति प्राप्त करें और तत्पश्चात रविवार को "अष्ट नागिनी मुद्रिका" स्थापित करें और "नागेश माला" से निम्नलिखित नागिनी मंत्र का नित्य एक माला जाप करें -
         "ॐ हुंं हुं शंखिनी वायुमुखी हुं हुं"
तीन दिवस के पश्चात यंत्र तथा माला को नदि या कुएं में विसर्जित कर दें साधना की समाप्ति पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नागकन्या सहायता करती है।
साधना काल में पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करें।
 सात्विक आहार लें।
व्यर्थ के वाद विवाद से बचें
साधना काल में अति संयमित होने से बचे
  

अष्ट नागिनी तंत्र


यायावर जीवन का यही लाभ है। शुभ अवसर प्राप्त होते ही परम पूज्य गुरुदेव की अनुमति प्राप्त कर भ्रमण पर निकल पड़ता और इसी क्रम में उन महान सिद्धौ और जोगियों के साहचर्य का सौभाग्य भी मुझे मिल जाता जो भारत भूमि को अपने तप पुण्य और ज्ञान के प्रकाश से आलोकित करते हुए स्वयं को एकांत में छुपाए साधनारत हैं। घटना मेरे काशी प्रभास की है विगत 3 माह से काशी के गोपनीय सिद्ध स्थल पर निवास कर रहे कुछ उच्च कोटि की साधनाओं में रात होने के लिए कृतसंकल्प था। यह गुरुदेव जी की कृपा दृष्टि ही थी जो इस अपरिचित क्षेत्र में साधनारत होते हुए मुझे अभी तक किसी व्यवधान का सामना नहीं करना पड़ा था। नित्यप्रति प्रातः बेला में गंगा स्नान कर बाबा विश्वनाथ का दर्शन करना  और पंचगंगा घाट स्थित अपने निवास पर लौट कर कुछ समय ध्यान अवस्थित रहना मेरी दिनचर्या का अभिन्न अंग बन चुका था।
 सर्पों से घिरा हुआ भीमकाय अघोरी
        ग्रीष्म ऋतु का सूर्य अपनी पूर्ण प्रखरता किए हुए आकाश में चमक रहा था ब्रह्मा घाट के निकट तपती रेत अग्निकांड के समान जल रही थी, दूर-दूर तक किसी परिंदे का भी नामोनिशान नहीं था।दहकते पाषाण खंडों पर सावधानी से पॉवर रखता हुआ मैं गंतव्य घाट की ओर गतिशील हुआ ही था कि एक विचित्र सा दृश्य सामने आ पड़ा। उस अंगारवत रेत की शैया पर एक भीषण अघोरी काया सुख निंद्रा में तल्लीन थी। वैसे तो इसके पूर्व भी मैं काशी में अनेक हट योगियों की विचित्र क्रियाओं का साक्षी बहुत रह चुका था, पर यह अघोरी कुछ अनोखा ही प्रतीत हुआ इसलिए कि यह अकेला नहीं था, बल्कि उसके चतुर्दिक कुछ विषैले नाग बिखरे हुए थे जो अपने फन उठाकर कदाचित सूर्य के प्रचंड किरणों को अवरुद्ध कर रहे थे।
    क्षणभर को एक सिहरन मेरे शरीर में व्याप्त हुई पर शीघ्र ही स्वयं को संयमित घर मै पंचगंगा घाट की ओर बढ़ चला। तैलंग स्वामी के मठ में पहुंचने के बाद भी वह दृश्य बारंबार मेरे मानस को उद्देलित करता ही रहा और अंततः गहन निशा में पुनः उसी स्थान पर जाने को मेरा मन मचल उठा जैसे कोई अदृश्य शक्ति बारंबार मुझे खींच रही हो और दबे पांव आश्रम से बाहर निकालकर मैं त्वरित गति से गंगा की ओर बढ़ चला।
      काशी के प्रसिद्ध है शमशान मणिकर्णिका घाट से गुजरते हुए कई अघोरियों से सामना हुआ जगह-जगह जिताएं जल रही थी। चड़़ चड़ की आवाज के साथ मृत मानव-देह के अवशेष अग्नि में तिरोहित होकर वातावरण को अजीब गंध से भर रहे थे। शुद्र मानव-देह कि निस्सारता का बोध कराते हुए कई अघोरी श्मशान साधना में लीन थे, तो कुछ श्मशान जागरण प्रयोग कर रहे थे पर इन सब से बेखबर मै ब्रम्हा घाट पर उसी अघोरी की झलक देखने को व्याकुल हो रहा था।
   अपने अनुमानित स्थल पर उस भीमकाय अघोरी की ज्यों का त्यों पड़ा देखकर मेरी आंखें प्रसन्नता से चमक उठी, उसके अलमस्त मुद्रा उसकी संपूर्ण स्पृह अवस्था का सूचक लग रही थी पर इससे पूर्व कि मैं उसके सन्निकट पहुंचू एक विशालकाय नागराज ने मेरा मार्ग अवरुद्ध कर दिया, उसकी भयानक फुफकार से चौककर मैंने सिर उठाया,कि उसके मस्तक पर सुशोभित दिव्य मणि पर मेरी मेरी दृष्टि स्थिर हो गई।जीवन में पहली बार किसी मणिधारी सर्प के दर्शन मुझे हुए थे और मैं मन ही मन गुरु मंत्र स्मरण करता हुआ, उस यमदूत के समक्ष अविचलित भाव से खड़ा था।
  निरुपाय और पराजित सा वह नागराज पीछे की ओर लौट पड़ा और इसके साथ ही अघोरी की स्नेहासिक वाणी मेरे कानों में ध्वनित हुई।आखिर तुम आ ही गए, तुम्हारी प्रतीक्षा में ही मैं यहां पर लेटा था कुछ अचंभित सा होकर मैं पास पहुंचा और गुरुदेव के सन्यासी शिष्य के रूप में उसे अपना परिचय दिया ही था कि प्रसन्नता के अतिरिक्त में वह अघोरी उठकर बैठ गया और मुझे अपना अंक में भीच लिया। करुणा पूरित हस्त मेरे सिर पर फेरता हुआ वह मेरे भाग्य की सराहना करता रहा और मेरे काशी निवास का प्रयोजन पूछा।
           मणियों के प्रकाश से झिलमिलाते उस रेत पर हमने संपूर्ण रात्रि व्यतीत कर दी। शिशुओं की किलकारी भरते हुए वह अघोरी अपने वाममार्गी पंथ की अनेक रोचक घटनाएं मुझे सुनाता जा रहा था बिना इस ओर ध्यान दिये कि मैं उसके संस्मरण की अपेक्षा उसके विचित्र मणिधारी सर्प की क्रीड़ाए देखने में तन्मय था। इतना तो मेरे मानस में स्पष्ट था कि वह साधारण सर्प नहीं थे वरन अलौकिक जगत से संबंधित प्राणी विशेष थे जिन्हें यह अघोरी अपनी साधना के बल पर वशीभूत किए हुए था।
        अरुणोदय की प्रथम किरण धरती पर अवतरित होते ही सभी नाग सहरसा अदृश्य हो गए, तभी वह अघोरी उठ खड़ा हुआ और विनम्र भावों में निवेदन करते हुए कहा निश्चय ही मैं पुणात्मा हूं जो आपका दर्शन पा सका। मेरे जीवन की सबसे बड़ी आकांक्षा ही यही है कि मात्र एक पल के लिए ही सही परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद जी के चरणो में बैठ सकूं। मेरी इच्छा तो ना जाने किस जन्म में पूर्ण होगी पर यह मेरा परम सौभाग्य होगा यदि आप कुछ समय के लिए मेरे आतिथ्य स्वीकार करें। मेरी कुटिया गंगा के दूसरे तट पर ही है आशा है आप मेरा आग्रह अस्वीकार ना करेंगे।
                गंगा पार करने के लिए नौका की आवश्यकता थी। अघोरी ने किसी मांझी की तलाश में नजर दौड़ाई पर किसी को दृष्टिगोचर ना होते देखा हुआ निराश सा हो गया। उसकी परेशानी देखकर मैंने होठों पर हल्के मुस्कुराहट दौड़ाई और मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर आश्वस्त करते हुए कहा नौका की आवश्यकता नहीं और इतनी सुबह किसी मल्लाह का इस निर्जन तट पर मिलना भी संभव नहीं। गुरुदेव की असीम कृपा से मैंने जल गमन प्रक्रिया सिद्ध कर रखी है। तुम मात्र मेरा हाथ पकड़े रहना।
             गंगा पार एक सुरम्य स्थान पर अघोरी की कुटिया थी जिसमें एक आसन व कुछ तांत्रिक वस्तुएं के अतिरिक्त कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था। प्रेम पूर्वक मुझे आसन पर बैठा कर उसने मुझे कुछ खाने का आग्रह किया। उस निर्जन स्थान पर कुछ खाद्य सामग्री उपलब्ध होने की आशा करना ही व्यर्थ था।मैंने हंसकर टालना चाहा, पर जब उसका आग्रह बढ़ता ही गया तो मजाक करते हुए मैंने कहा यदि तुम मेरा स्वागत करना ही चाहते हो तो मुझे छप्पन भोग मंगा कर खिलाओ। मेरी फरमाइश सुनकर वह अघोरी अत्यंत प्रसन्न हुआ और कुछ अस्फुट मंत्रोच्चारण करने लगा।
        रूपसी नाग कन्या से साक्षात्कार:-
दूसरे हे झण एक अप्रतिम षोडशी चांदी की थाल लिए मेरे समक्ष उपस्थित हो गई। उसके कंचनवत् शरीर से अपूर्व सुगंध प्रभावित हो रही थी। मैंने स्वयं को संयमित रखने का प्रयत्न कर ही रहा था कि वह रूपसी थाल मेरे सामने रखकर अदृश्य हो गई। नजर उठाकर देखा तो वास्तव में ही 56 प्रकार के व्यंजन मेरे लिए मंगाए गए थे। वह अलौकिक भोज अत्यंत स्वादिष्ट व तृप्ति दायक था, पर उस पुरे समय अंतराल में मेरा ध्यान उस सौंदर्य की प्रतिमा पर ही लगा रहा। रह रह कर उस कन्या का सौंदर्य मेरी आंखो के सामने जादू सा चमक उठता था।भोजनोपरांत मैंने अघोरी से उस कन्या का परिचय जानना चाहा, तो वह शांति स्वर में बोला -"वह नागकन्या थी"
            - नाग कन्या!सुनते ही मैं उछल पड़ा।
               -हां! पर वह मेरी आज्ञाकारी सेविका है। साधना से मैंने उसे वशीभूत कर रखा है, उस लोक के अन्य सर्प भी मेरे अनुचर हीं हैं।
            अघोरी अत्यंत निश्चिंतता से अपने सुख ऐश्वर्य का बखान कर रहा था।
         - पर मैं तो अभी तक कपोल कल्पित ही मानता था। क्या अभी भी नाग जाती का अस्तित्व पृथ्वी पर विराजमान है?  मैं अपनी जिज्ञासा रोकने में असमर्थ था।
              अघोरी ने रहस्य उद्घाटन करते हुए बताया- हमारे पुराणों में कई स्थानों पर नागों का वर्णन आया है। महाभारत काल में तो श्रेष्ठ पांडु पुत्र अर्जुन ने नागकन्या उलूपी से विवाह भी किया था। स्वयं भगवान श्री कृष्ण की रानियों में कई नागकन्या भी शामिल थी परंतु भारतीय पुराणों की विचित्र अदाओं को देखकर लोग इन्हें कपोलकल्पित मान लेते हैं अथवा उन्हें प्रतीक रूप में वर्णित किया हुआ समझ लेते हैं, जबकि यह सभी कथाएं शत-प्रतिशत प्रमाणित और विश्वसनीय है। इन सभी में नागों को भी मनुष्य की भाती ही निरूपित किया गया है, परंतु नाग जाति मानव से अधिक विलक्षण वह शक्ति संपन्न होती है तथा अपनी इच्छा अनुसार शरीर धारण कर लेने की क्षमता भी इनमें होता है। अतः साधना के बल पर इन्हें वशीभूत कर मनोवांछित कार्य संपन्न कराया जा सकता है।
     सृष्टि का एक नवीन रहस्य मेरे समक्ष अनावृत हो रहा था अत्यंत विनम्र निवेदन करते हुए मैंने जब अघोरी से नागो को वशीभूत करने की साधना का रहस्य जानना चाहा, तो उन्होंने कहा अष्ट नागनी तंत्र के माध्यम से नागिनीयो को अपने अनुकूल बनाया जा सकता है। यह 8 विलक्षण शक्ति संपन्न नागनीया है-अनंतमुखी, शंखिनी, वासुकीमुखी, तक्षकमुखी, कर्मोटकमुखी, कुलीरमुखी, पद्मिनी मुखी, महापद्म मुखी।
       नागिनियो की साधना मां बहन अथवा पत्नी रूप में की जा सकती है साधक जिस रूप में नागनियों का चिंतन करता है वह उसी रूप में साधक के साथ रहकर उसकी मनोकामना पूर्ति करती रहती हैं।